संदीप कुमार सिंह 08 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 3398 0 Hindi :: हिंदी
मुझे शिकायत है बहुत आपसे क्योंकि, आप हमसे अक्सर मिलते ही नहीं हैं। एक हम हैं जो आपके इन्तजार में, आँखें बिछाये खड़े हैं यहां कब से। गज़ब का समय था वह जब थे हम साथ, और आज मिलने का भी समय नहीं है। समय ने हमें कहां से कहां ला दिया है, सारे मौज को छितर_बितर कर दिया है। कुछ गुजारिश करूं की रहमो करम कर, कि मुझे मेरे सपनों की दुनिया बसाने दे। यूं ही खुले आसमानों के तले मुझे गुनगुनाने दें, अरमानों के पंख लगाकर मुझे उड़ने दें। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा) बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....