संदीप कुमार सिंह 18 Nov 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है।जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4031 0 Hindi :: हिंदी
#विधा:_मुक्तक छंद #"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत" काटे कटी न रात अब,आँखों में है नूर। कदमों में है जोश अति,खुद पे करूं गुरूर। परचम अपना ही उड़े,सदा हरेक देश_ जीवन बीते शान में,बनूं नहीं मजबूर। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....