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कर्मो का खेल

Manasvi sadarangani 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक कर्म 21057 0 Hindi :: हिंदी

कर्मो का सब खेल है, वरना तो कोई भी नहीं फैल है।
नियति कब कर्म और कर्म कब भविष्य बन जाता है,ये इंसान जान ही नहीं पाता है।
अपने पे आए तो कर्म और दूसरा कोई करे तो गुनाह बन जाता है, पता ही नहीं ये जीवन हमे क्या सिखाता है।
धर्म और अधर्म में इस तरह फंसा इंसान है, की अपने ही कर्मो  की नहीं हो रही पहचान है।
                       
श्रीमती मनस्वी सदारंगानी

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