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बाल दिवस पर विशेषः बच्चों की आवाजः शांता सिन्हा

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख बाल-साहित्य Child 86175 0 Hindi :: हिंदी

बाल श्रम के खिलाफ आवाज बुलंद करनेवाली शांता सिन्हा का जन्म 7 जनवरी 1950 को आंध्रप्रदेश के नेल्लोर में हुआ था। वह हैदराबाद सेंट्रल विवि में राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर रह चुकी हैं। उन्होने 1991 में एमवी फाउंडेशन की स्थापना की। 
वे बाल अधिकार आयोग की पहली राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहीं। उन्हें पद्यश्री से नवाजा गया। साथ ही उन्हें मैग्सेसे पुरस्कार भी मिल चुका है। पिछले 25 सालों में वे अपने संगठन के माध्यम से करीब 10 लाख बच्चों को बाल श्रम से मुक्ति दिला चुकी हैं।
हमारा मुल्क अभी इस मामले में सबसे निचले पायदान पर है। सवाल यह कि जिस देश में 20 करोड़ लोग एक जून रोटी के लिए तरशते हों, कई घरों में चूल्हे तक नहीं जलते हों, वहां बचपन को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है? 
इसलिए बच्चों की हालत में सुधार करने के बजाय बाल दिवस जैसे दिवसों में बच्चों के लिए फौरी सहानुभूति दर्शाने के रिवाज खूब चलते रहते हैं। इनके बचपन को बचाने के लिए न कभी कोई आंदोलन होता है, न धरना-प्रदर्शन।
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अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायतः एक प्राथमिक पाठशाला’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायत, veerendra kumar  dewangan से सर्च कर और पाकेट नावेल के चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है तथा लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है। आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
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