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तेरे घर की गलियों से हर दिन गुज़रता हूं

मोती लाल साहु 31 May 2023 शायरी समाजिक तेरे घर की गलियों से हर दिन गुज़रता हूं, कुछ आहट लेता हूं- कुछ ख़ुशबू आती है- यह बहकी-बहकी सी शाम होती है- गुज़रता हूं दीदार को- मन प्यासा रहता है- देखा ना झलक कहीं- दिल खोया रहता है- मुझे मालूम है तू भी तो जलती रहती है- यह ख़्याल रखता हूं दिल थामें रखता हूं। 4228 0 Hindi :: हिंदी

कुछ आहट लेता हूं, कुछ ख़ुशबू आती है।
यह बहकी-बहकी सी, शाम होती है।।

यह ख़्याल रखता हूं, दिल थामें रखता हूं।
तेरे घर की गलियों से, हर दिन गुज़रता हूं।।

गुज़रता हूं दीदार को, मन प्यासा से रहता है।
देखा ना झलक कहीं, दिल खोया रहता है।।

मुझे मालूम है तू भी, तो जलती रहती है।
कुछ आहट लेता हूं, कुछ ख़ुशबू आती है।।

ये ख़्याल रखता हूं, दिल थामें रखता हूं।
तेरे घर की गलियों से, हर दिन गुज़रता हूं।।
-मोती

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