Rahul verma 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य खुशनसीब चांद/ राहुल वर्मा 6048 0 Hindi :: हिंदी
ऐ- चांद तू सोच कितना खुशनशीब है, आसमां में रहकर भी धरा के करीब है, मैं लिख रहा हूँ मेरे कल्पित विचार मेरी लेखनी से, तुझ से ही करवाचौथ, तुझ से ही ईद है। ऐ चाँद तू सोच कितना खुश नशीब है। देख तेरे चेहरे पर कई दाग है, फिर भी तू सुंदरता का बाग है, मन करता होगा करवाचौथ पर हर स्त्री का कि पकड़ कर उतार लू छत पर तुझे ऐ-चाँद, फिर सोचती होगी कि ये तो कइयों का सुहाग है। स्त्रियां छलनी में से देखती है तुझे शायद तेरे दाग छिप जाए, ईद भी असमंजस में रहता है जब तक चाँद न दिख जाए, तू सोचता होगा, कि तेरे सुखी जीवन मे साथ है सब लोग, तो गलत सोचता है , अरे तेरे तो ग्रहण भी लग जाये, तो तब तक दान करते है लोग जब तक ग्रहण न मिट जाए। हाँ..! पर तू रिश्तों से दूर है तो कदर है तेरी, नजदीक होता तो तेरे दाग गिने जाते, कचहरी के कटघरे में आप रोज खड़े किए जाते, जो तेरे समझ नही आते ऐसे सवाल किये जाते, न्यूज़ के चेनलो पर तेरा दाग दिखाये जाते, देश के अखबार भी शायद सुर्खियो मे आते, चंद लोग भी चाँद पर उंगली उठाते, पर अच्छा रहा कि तुम धरा पर नही आते।