संदीप कुमार सिंह 28 Apr 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाजिक हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 9097 0 Hindi :: हिंदी
चिंता से ही गुण घटे, और घटे रुप ज्ञान। चिंता करना व्यर्थ है, चिंता चिता समान।। चिंता चिता समान है,इससे बढ़े अज्ञान। चिंतन अवश्य कीजिए,और बढ़ाए मान।। चिंता चिता समान है,खुद का होता नाश। खुश रहिए हर हाल में,छू लेंगें आकाश।। चिंता चिता समान है,और बढ़ाए शोक। जीवन पथ पर हम चलें,मिले खुशी बेरोक।। चिंता चिता समान है,सदा करे नुकसान। बस मस्ती में सब रहें,सुन्दर हो पहचान।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....