Punit tiwari 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक विधवा 15621 0 Hindi :: हिंदी
यह रूप मेरा है ऐसा प्रिय तुम्हें दिखा न् सकती हूँ। मेरे मन की पीड़ा प्रिय मैं तुम्हें सुना न् सकती हूँ।। फीके पड़ गए रंग मेंहदी के इसे सजा न् सकती हूँ देख रही माथे की बिंदिया इसे लगा न् सकती हूँ।। प्रिय मेरा श्रृंगार तुझ से ही मेरा यौवन तुझ तक ही। सह रही यातना जग की तुझसे कह न् सकती हूँ।। सात जन्मों का रिश्ता था यह सात फेरे में अर्पण। सात जन्मों का वादा था सात जन्मों का बन्धन ।। तुझसे मेरा सौभाग्य अटल था मैं तुझपे ही वारि टूट गया सौभाग्य सूत्र यह मै विपदा की मारी।। सहेज़ रही मांग है सूनी पर इसे भर न् सकती हूँ। रूप मेरा ऐसा प्रियवर तुझे दिखा न् सकती हूँ।। पुनीत तिवारी आजाद रचनाकार