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जिम्मेदारीयाँ -अबोध मन क्या करे जमाने मे

Raj Ashok 28 May 2023 कविताएँ समाजिक जिम्मेदारी 7249 0 Hindi :: हिंदी

जिम्मेदारियाँ  बहुत है । 
अबोध मन क्या करे ,जमाने मे। 
चुनौतियों के   तरक्ष ,
अक्सर दिल मे चुभते है। 
 उलझनों मे उलझे,इस बचेन मन को 
अब  लोगों का ,मशवरा भी। 
 मशकरो का कोई ,जोक लगता  है ।
चाहत है ये दिल  की
के खुद पे खुब हंसे ... 
पर  मेरे शब्दों की बंदिश ने
 मेरी खिलखिलाहट  सी
 हंसी को , गुलाम बना रखा है। 
चहरे के हाव -भाव से ही
 अक्सर आज-कल की
दोस्ती निभाई जाती है। 
योहि कभी खालीपन मे, 
जरा सा, सोचते  है , के काश
आज की सभ्यता , ये हमें जरा से
संसकार  बता दे, 
हार, जीत का फर्क सिखा दे ।
तो जीवन क्या आसान होगा ।

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