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वो पुराने दिन, वो सुहाने दिन

DINESH KUMAR KEER 16 Apr 2024 कविताएँ समाजिक 743 0 Hindi :: हिंदी

वो पुराने दिन, वो सुहाने दिन
जब टीवी घर आया, तो लोग किताबें पढ़ना भूल गए ।
जब कार दरवाजे पर आई, तो चलना भूल गए ।
हाथ में मोबाइल आते ही चिट्ठी लिखना भूल गए । 
जब घर में ac आया, तो ठंडी हवा के लिए पेड़ के नीचे जाना बंद कर दिया।
जब शहर में रहने लगे, तो मिट्टी की गंध को भूल गए ।
परफ्यूम की महक से लोग ताजे फूलों की महक भूल गए !
हमेशा इधर - उधर भागते लोग, रुकना भूल गए कि कैसे रुकना है ।
और अंत में जब सोशल मीडिया मिला, तो घर वाले आपस में बात करना भूल गए ...

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