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नोटबंदी एवं जीएसटीःः

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख अन्य Economy 88012 0 Hindi :: हिंदी

       8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐलान के द्वारा देश में चल रहे 1000 रुपए एवं 500 रुपए के नोट को तत्काल प्रभाव से बंद कर दिया। इससे यह अनुमान लगाया जा रहा था कि बड़े नोटों के रूप में मौजूद कालाधन काले कारोबारियों, भ्रष्टाचारियों, अपराधियों, जमाखोरों व मुनाफाखोरों से निकलकर बैंकों में जमा हो जाएगा, जो देश के काम आएगा। 
       कुछ माह बाद बाजार में 2000/एवं 500 /रूपए का नया नोट लांच कर दिया गया। यधपि नोटबंदी का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से कोई खास नहीं रहा, तथापि वे दो नंबरी, काले कारोबारी, उग्रवादी, नकली नोटों के शहंशाह, ड्रग्स के व्यापारी और भ्रष्ट लोग सकते में आ गए, जिनके पास बेहिसाब नकद धन पड़ा हुआ था।
       भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए नोटबंदी उचित कदम था, लेकिन बैंकों की लापरवाही के कारण इसका समुचित परिणाम नहीं निकला। गर बड़े नोट सदा के लिए बंद कर दिए जाते, तो परिणाम मुकम्मल हो सकता था। कालाबाजार और कालाधन समेटने का सबसे अच्छा जरिया कोई है, तो वह है, बड़ा नोट। 
       इसी बात का जिक्र योगगुरु बाबा रामदेव 2010 से 13 तक के अपने शिविरों मे ंहरदम किया करते थे। वे कहते थे कि भ्रष्टाचार खत्म करना है, तो 500 और उसके ऊपर के सारे नोट बंद कर दिए जाने चाहिए।                         
                           जीएसटी
       पूरे देश मे वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली यानी जीएसटी इसलिए लागू किया गया कि विभिन्न करों से उपभोक्ताओं और व्यापारियों को मुक्ति मिले तथा इसमें व्याप्त भ्रष्टाचरण का खात्मा हो। विदित हो कि जीएसटी का मसौदा यूपीए के कार्यकाल में बना था, लेकिन इच्छाशक्ति के अभाव में वह इसे लागू नहीं कर पाई थी। 
       एनडीए की सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में इसके लिए पांच स्लैब बनाए। अ- 0 प्रतिशत अर्थात करमुक्त; इनमें उन वस्तुओं को रखा गया, जो मानव जीवन की दैनंदिन आवश्यकता के लिए जरूरी है। ब- 5 प्रतिशत-वे चीजें जो आवश्यक तो हैं, लेकिन जिसमें विलासिता कम है।  स-12 प्रतिशत, जो विलासिता के वर्ग में हैं। 18 प्रतिशत, जो अति विलासिता की श्रेणी में हैं और 28 प्रतिशत-अत्यधिक विलासिता की वस्तुएं, जिसका उपयोग धनीवर्ग करता है।       
       जीएसटी का परिणाम यह है कि प्रत्येक माह 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि राजकोष में जमा हो रही है। यद्यपि कोरोनाकाल में इसका कलेक्शन प्रभावित हुआ है, तथापि अब जीएसटी ने रफ्तार पकड़ ली है। यहां यह कहना जरूरी है कि मुख्य विपक्षी दल इसे ‘गब्बर सिंह टैक्स’ कहकर उपहास उड़ाने में पीछे नहीं रहता, जबकि जीएसटी मूलतः उसी की देन है। जीएसटी से पेट्रोल-डीजल को दूर रखा गया है, जबकि इसकी मांग देशवासियों के द्वारा निरंतर की जा रही है।
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