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बच्चपन

Tulasi Seth 09 Apr 2023 कविताएँ बाल-साहित्य बच्चपन 8650 0 Hindi :: हिंदी

रुक जरा ए समय की धारा
          लौट चलुं मैं पिछे,
जहां हुं मैं एक प्यारी बच्ची
        और मन हैं कितने सच्चे।
यादों की वाहों में समेटुं जरा
          खो जाऊं उन खेलों में,
जहां थे रंगीन गीत सुरीले
          प्यार का नजारा मेलों में।
रंग जाऊं मैं उन रंगों में
          हरपल जिस में खुशियां थी,
ना थी  कभी कोई मजबूरी
         ना थी मिलावट चेहरों पे।
फुल जैसी मुस्कान थी सच में
        तीतली जैसी चंचल
मन में थे हजारों सपने,
       ख्वाब बड़े थे अपने।
दिन थे वो भी सुंदर सुहाने
        आनंद की बस लहरें थीं,
ना थी कोई परेशानी
        बस हंस खेलनी की त्योहारों थी।
बहुत प्यारा था वो बच्चपन
          वहुत ही नाज़ुक बचपना थी, 
काश फिर से लौट आए वो 
         जहां हरपल बस खुशियां थी।
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