MAHESH 28 Feb 2024 कविताएँ हास्य-व्यंग मरना है तो खा के मरो,.......!!! 917 0 Hindi :: हिंदी
स्वरचित रचना- मरना है तो खा के मरो.......!!! रचनाकार---महेश कुमार 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 इस धरती पर बोझ बने जो, उनका यही तराना है! कि, मरना है तो खा के मरो, का फिर जग में आना है!! तन, मन, धन, से ही इस, जग का, सारा ताना बाना है! नर हो या नारी हो कोई, हर कोई इनका दीवाना है!! कि, मरना है तो खा के मरो, का फिर जग में आना है!! कोई धन सेवा में लगा के, खुशी करें महसूस यहां! कोई तो धन करके इकट्ठा, खुश है मक्खीचूस यहां! कोई धोखा देकर तो कोई छीन-झपट कर लाता है! कोई किसी का छीन यहां, हक नाहक धाक जमाता है! कोई मार-काट हत्या कर, धन ले मौज उड़ाता है! कोई अल्ला कोई राम के, नाम पे धन उपजाता है! धनहित खुद का टंट-घंट, जन को माया बतलाता है! नज़रें जहां तलक देखें, दिखे बस ये ही नजराना है शासन-प्रशासन भी रटे वही घूस का मंत्र पुराना है! कि, मरना है तो खा के मरो, का फिर जग में आना है!! मन की माया भी है अनोखी, हमने भी है आंखों देखी! पहले मन को लूट लिए फिर, बगल से उन्हें सरकती देखी! क्या क्या करतब नहीं दिखाए, सारे सब्जबाग सर साए! साल न बीता सरक लिए फिर, आज तलक न लौट के आए! गंगा समझ के डुबकी मारे, तन पे कीचड़ जब हम पाए! मन की दुनिया अजब निराली! पर करतूते गजब हैं काली!! मृग मरीचिका सी वो अप्सरा, वो ख्वाबों के फूलों का आली! आंख खुली तो सब अपने सा, गायब हुआ कहीं सपने सा! धोखा कहीं न देखा ऐसा! मन की इस दुनिया के जैसा!! तन मन धन सब गंवा के बैठे, तौलिया लपेटे खड़े घाट पे, मुन्ना-मुन्ना पुकार रहे हैं, पर मुन्ना वहां हो तब न बोले! वो तो कब का सरक लिया, सब लेकर माल-खजाना है! कि, मरना है तो खा के मरो, का फिर जग में आना है!! तन की दशा-दुर्दशा का मैं हाल कहूं अब का तोहसे! तन के पुजारी कहां नहीं हैं, ढूंढ रहा हूं मैं कब से! इक को देखा तन का लेखा, मठ के जोग में झोंक रहा! दूजा तन की सुंदरता में, भोग पाप का भोग रहा! तीजा तन निर्दोष किसी का, कुत्ते सा है नोच रहा! चौथा कौवे सा तन मैला, किसी के तन को कोंच रहा! तन की व्यथा की और कथा अब और कहूं मैं का तोहसे! तन पर उन्हें घमंड है इतना, कि मांज रहें हैं वो कब से! जबकि जान रहे हैं वो, तन मिट्टी में मिल जाना है! फिर भी भव में भ्रमित हुआ वो गाए यही तराना है!!! कि, मरना है तो खा के मरो, का फिर जग में आना है!!!🌹🙏 "महेश"