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सब कुदरत के खेल हैं-सहे मनुज लाचार

संदीप कुमार सिंह 01 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 7735 0 Hindi :: हिंदी

कुंडलिया छंद
होनी होकर ही रहे, रखिए सबसे प्यार।
सब कुदरत के खेल हैं,सहे मनुज लाचार।।
सहे मनुज लाचार,और श्रम कर तब बढते।
मिटे तभी सब प्यास,खुशी में जीवन कटते।।
अनुपम जीवन धाम,मनुज अद्भुत है जोनी।
पाते सब सुख खास,रहे होकर पर होनी।।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍🏼
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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