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ऐसी कैसी जिन्दगी-रहती है नाराज दूर ज्ञान से यह रहे गलत करे हर काज

संदीप कुमार सिंह 07 Oct 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 12781 0 Hindi :: हिंदी

#विधा:_दोहा छंद
#"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत"
ऐसी कैसी जिन्दगी,रहती है नाराज।
दूर ज्ञान से यह रहे,गलत करे हर काज।।

ऐसी कैसी जिन्दगी,रहता लगा मलाल।
 चक्कर ये वो का रहे,चलते फिर भी चाल।।

ऐसी कैसी जिन्दगी,जोड़ जोड़ कर यार।
सोचा आगे मैं बढूं,मगर मिले तकरार।।

ऐसी कैसी जिन्दगी,त्राहि त्राहि है प्राण।
परेशान तो सत्य है,रहे ढूंढता त्राण।।

ऐसी कैसी जिन्दगी,मंजिल करूं तलाश।
भटक भटक कर भी यहां, लगा रहे नित काश।।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍️
समस्तीपुर (देवड़ा)बिहार

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