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Mohammed fejaan

Mohammed fejaan 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक गूगल 9493 0 Hindi :: हिंदी

कविता ,नम्बर 10



मैं अरज करता है। कि एक शकश के बारे में उस के अमाल बहुत हि हुए थे र

किसी ने अतलहा से सवाल किया की ऐ अल्लहा

यहाँ कैसे-कैसे सकश है। यहां तो बहुत ही तबी शकश हैं. मतलबी किसी दो अत लहर से सवाल किया की ऐ अल्लहा यहाँ कैसे-कैसे शकश है यहा तो बहुत ही मतलबी सकस हैं।

तो ऊपर से अतलहां का जवाब लेकर अल्लहा का पारिस्ता आया जाति पर कहने लगा की ऐ शक्रश वो शुकश बुरे नहीं हैं। ऐ अल्लहा के नैक बंदे तेरे अमाल हि बहुत हि बरे हैं। बंदै बुरे जो कोई तेरा साथ नहीं देती हैं! तो इसकी यही वजा हैं! हो उस सकस ने अतलहा से तोबा मांगी थी। पाँच वक्त की नमाज पड़नी 1 सुर- की और मेरे भाई- बहन जो भी इसको पड़ेगा वह इसे हटाने से। समझेगा, 12. अपनी आँखे खोल गाहाँ मेरे भाई हाँ हॉ हॉ ?,, 
मोहम्मद फैजान सिद्धिकी हरियाण सी.टी पानीपत गांव

नूवाला 25 फूटा रोट ईन्दा विहार कॉलोनी

वार्ड न0 2,

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