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ईमानदार दादी मां

भूपेंद्र सिंह 17 Dec 2023 कहानियाँ दुःखद दिल को छू लेने वाली कहानी , भावुक कर देने वाली कहानी । बूढ़ी औरत की कहानी 12607 0 Hindi :: हिंदी

वो अमावस्या की काली ,खौफनाक और भयानक रात थी। कही पर रोशनी का कोई नामोनिशान तक ना था। पूरा अनंत काले मेघों से घिरा हुआ था।अनायास ही व्योम में तेज बादल उमड़ने लगे,काली बिजली चमकने लगी। वात भी अत्यादिक तेजी से चलने लगी। वीरानपुर नाम के एक सुनसान से गांव के एक कोने पर स्थित एक टुट्टे फुट्टे कच्चे मकान की कच्ची छत जोर जोर से हिलने लगी।वो छत एक बडी सी लोहे की पाइप के सहारे खड़ी थी वरना वो छत तो न जाने कब की गिर चुकी होती। अब तो ये पाइप ही इस छत का अविलंब थी और उस व्यक्ति की भी जो इस छत के नीचे सांसारिक चिंताओं से दूर मस्ती से सोया हुआ था।अनायास ही श्वानो के भौंकने की आवाज आने लगी जिसने इस सुनसान और भयानक रात में और अधिक दहशत पैदा कर दी। अकस्मात ही दीवार घड़ी में तीन घंटे बजे जिसका अभिप्राय था निशा के तीन बज चुके थे । चारों तरफ भयानक तिमिर छाया हुआ था।बाहर बहुत तेज बारिश होने लगी। छत पूरी तरह से हिलने लगी।ये अपूर्व दृश्य देखकर लग रहा था की वो छत अभी टूटकर उस व्यक्ति पर जा गिरेगी जो इस किराए की मकान की छत के नीचे आमोद प्रमोद से सोया पड़ा है। अचानक से मनोहर की नींद खुल गई । बाहर हो रही तेज धनागम ने उसके दिल में एक अजीब सा डर पैदा कर दिया। वो कंपकंपाते हुए पंजर के साथ खड़ा हुआ। उसने ज्यों ही छत की और देखा उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। छत पर लगी हुई पाइप टूट चुकी थी और तेजी से उसके सर की और कूच कर रही थी। ये भीतिपूर्ण नजारा देखकर वो सुन हो गया । उसके शरीर के मानो लकवा मार गया हो। वो हिल भी नहीं पा रहा था। उसे लगने लगा ये उसकी जिंदगी का अंतिम पल है इसके बाद उसका तनुपात हो जायेगा। उसने अपनी आंखे बंद कर ली।अचानक किसी ने उसे जोर से धक्का दे मारा। उसका पिंड काफी दूर जा गिरा उसका सिर एक पाषाण से जा टकराया। वो पाइप नीचे गिर चुकी थी। उसे अपने कानो में किसी बूढ़ी महिला की चीख सुनाई दी मानो वो बेबस औरत चिला रही हो अपनी जान की भीख मांग रही हो। मनोहर को सब कुछ धुंधला सा नजर आ रहा था । उसके विलोचन धीरे धीरे बंद होने लगे और वो बेहोश हो गया । चारों तरफ एक अजीब सी शांति छा गई। 
दरअसल ये कहानी छः महीने पहले प्रारंभ हुई थी।मनोहर एक 20-22 साल का पटु और तरुण था। वो रायनगर नाम के एक कस्बे में अपने पिता रामलाल और अपनी मां सावित्री देवी के साथ रहता था। वीरानपुर में वो नौकरी की तलाश में ही आया था।उसका कस्बा यंहा से काफी दूरी पर अवस्थित था। इस कस्बे में गमन के पश्चात वो खुश भी था और दुखी भी। खुश इसलिए क्योंकि उसे नौकरी मिल गई थी और दुखी इसलिए क्योंकि उसे रहने के लिए कोई मकान नही मिल रहा था। उसे जहां एक डाकघर में डाकिए की नौकरी मिल गई थी। 1500 रुपए महीने का वेतन सुनिश्चित कर दिया गया । उसे ईहा के विपरीत यह नौकरी स्वीकार करनी पड़ी क्योंकि उसे पैसों की सख्त आवश्यकता थी। उसने रहने के लिए मकान ढूंढने के अनेक प्रयत्न किए परंतु वो विफल रहा। जो मकान उसे दिखाए गए उनका किराया प्रतिमाह का 1500 रूपये से भी अधिक था और इतनी तो उसकी माह की बचत भी नही थी। रोष में आकर उसने इस नौकरी से इस्तीफा देने का सोच लिया।उसके साथ जो कुछ भी घटित हो रहा था सब कल्पना के परे था। वो सुबह आठ बजे ही डाकघर की और प्रस्थान कर गया।डाकघर में उसकी भेंट सलिल से हुई वो भी वही पर कार्य करता था। मनोहर ने अपनी सारी आपबीती सलिल को कह डाली। सलिल ने उसके प्रति अनुकंपा व्यक्त करते हुए कहा "हमजोलिए मेरे पास तुम्हारी इस बिपधा का एक समाधान है।" "डूबते को तिनके का सहारा।" मनोहर ने उसकी और उम्मीद भरी निगाहों से देखा और हड़बड़ाहट में तेजी से कहा "कैसा समाधान।" "मैं तुम्हे एक घर दिलवा सकता हूं, वो भी बहुत ही कम किराए पर।" मनोहर को मानो सलिल के रूप में अपना मसीहा मिल गया हो।सलिल उसे बहुत ही कम किराए पर एक मकान दिखाने के लिए ले गया।वो उसे एक टूटे फूटे कच्चे मकान के अंदर ले गया।मकान बुरा न था दो कमरे थे,दोनो कच्चे थे मानो वर्षो से ऐसे ही खड़े हो। चारों तरफ कचरा बिखरा हुआ था कही पर पट पड़े थे तो कही कागज। अजीब सी बदबू वहा पर फैली हुई थी।उसे दोनो में से एक कमरा चुनना था ।यद्यपि वे दोनो कमरे ही एक जैसे थे तथापि उसने एक कमरा चुन लिया।"सलिल इस दूसरे कमरे में कोन रहेगा और इसका किराया कितना है?" मनोहर ने शंकापूर्ण दृष्टि से सलिल की और देखते हुए कहा। अनेक सवाल मनोहर के मस्तिष्क में दौड़ रहे थे। मनोहर की बात सुनते ही सलिल को अचानक से कुछ याद आया और वो हड़वड़ाहट में बोल पड़ा "अरे!भाई मैं तुझे मकान मालकिन से मिलवाना तो भूल ही गया।" ये कहते हुए सलिल ने मनोहर को हाथ पकड़ा और उसे एक बूढ़ी औरत के पास ले गया।मनोहर उस बुढ़िया को देखकर हैरान रह गया। वह बुढ़िया बहुत ही भद्दी,अभद्र सी बुढ़िया थी।उसका पिंजर अब जवाब दे चुका था।उस बुढ़िया में से एक अजीब सी दुर्गन्ध आ रही थी।ये सारा दृश्य उसे यमसदन के समान नजर आने लगा।मनोहर को उल्टी आने वाली हो गई।उस बुढ़िया ने अस्पष्ट सी कंपकंपाती हुई आवाज में मनोज के चेहरे की और देखते हुए कहा"बेटा यहां रह लेना,इसे अपना ही घर समझो।मुझे बस महीने के 500रूपये दे देना,मेरी गुजर हो जायेगी।" यह कहकर वो बुढ़िया खांसने लगी। सौधा बुरा नही था।"आम के आम गुठलियों के दाम।" ये बात मन में सोचते हुए मनोहर ने हां में सिर हिला दिया।हालांकि मनोहर इस यमालय में रहना तो नही चाहता था परंतु वो मजबूर था । उसने इसी जगह रहना सुनिश्चित कर लिया। वे दोनो वहा से वापिस डाकघर की और निकल पड़े।मनोहर ने सलिल को भावुक होते हुए कहा"मीत हो तो तुम जैसा वरना न हो।"उसकी बात सुनकर सलिल हंस पड़ा। गोधूली बेला को वह डाकघर से वापिस आया और कमरे की सफाई की वहा पर अपना सामान रखा।उसी यामिनी से वो उस कमरे में रहने लगा। पास वाले कमरे में वह अभद्र सी बुढ़िया रहती थी।हालांकि मनोहर का अधिकांश समय डाकघर में ही बीत जाता था परंतु जब भी वो घर पर होता वो बुढ़िया उसके चारो और मंडराती रहती और अपना रोना उसके आगे रोती रहती।"सुन रहे हो बेटा,मेरे लड़के को शहर में नौकरी मिल गई थी वो अपनी पत्नी के साथ वही चला गया,मुझे यहां अकेला छोड़ गया,कहकर गया था दादी हर माह मिलने आया करूंगा,दो साल हो गए आज तक नही आया। मुझे भूल गया होगा,अब तो उससे मिलने की उम्मीद ही खत्म हो गई।"ये कहकर वो बुढ़िया फूट फुटकर रोने लगी। ये सुनकर मनोहर भी थोड़ा सा मायूस हो गया,पर बुढ़िया की ये बाते मनोहर के हृदय को पिघला न सकी।इस भुवन में उस बुढ़िया का कोई अपना नहीं था , को सगे थे वो भी पराए हो गए थे। इसी तरह मनोहर के दिन गुजर रहे थे।असल में मनोहर उस बुढ़िया से परेशान हो गया था।उसे उस बुढ़िया की बातें अविहित सी लगती थी।उस बुढ़िया की दुर्गन्ध उस घर उड़ती रहती। वो बुढ़िया मनोहर से बाजार से कभी कंदर मंगवाती कभी वसन,सब्जी तो कभी घनसार। मनोहर को अब लगने लगा की वो बुढ़िया उसे अपना अनुचर समझती है।मनोहर इस घर में अपनी आकांक्षा विपरीत रह रहा था । मनोहर अब उस बुढ़िया से बहुत अधिक चिड़ने लगा,कई बार तो वो उस बुढ़िया को डांट भी देता था।मनोहर इस बात से भली भांति परिचित था की वो ये मकान छोड़ नही सकता और वो बुढ़िया चाहकर भी उसे मकान से निकाल नही सकती क्योंकि उसी के पैसों पर उस बुढ़िया की गुजर हो रही थी।मनोहर सोचता था कि उस बुढ़िया के साथ जो कुछ भी हुआ वो उचित ही था।न जाने क्यों,उसके हिया से उस बुढ़िया के प्रति सारी अनुकंपा समाप्त हो चुकी थी।कभी कभी तो मनोहर सोचता था की उस बुढ़िया का काशीवास हो जाए तो ठीक है।मनोहर उस बुढ़िया की बातें सुनना बिल्कुल भी पसंद नही करता था मगर वो बुढ़िया सारा दिन उसके आगे अपना दुखड़ा रोती रहती।मनोहर अब उसे मकान का किराया भी सिर्फ 300रूपये देने लगा।उस बुढ़िया ने ये सौदा चुपचाप स्वीकार कर लिया।एक शाम मनोहर डाकघर से अपने घर की और लौट रहा था।उसने अपनी नजर नभ में दौड़ाई तो उसने देखा की कलावान उपस्थित नही था। अचानक उसे स्मरण हुआ ये अमावस्या की रात है।वो घर में घुसा । वो बुढ़िया अपने कमरे के बाहर बैठी शायद  उसी का इंतजार कर रही थी। मनोहर ने उसे नजरंदाज किया और तेजी से अपने कमरे में घुस गया।वो बुढ़िया भी उसके पीछे कमरे में घुस गई।"अरे!बेटा सुनो" बुढ़िया ने जोर से बोलते हुए कहा।मनोहर ने उसकी बात को सुनकर भी अनसुना कर दिया। उसने बुढ़िया की और नयन तक न किए।वो बुढ़िया कुछ नजदीक आकर फिर से जोर से बोल पड़ी"बेटा सुन रहे मेरी बात मेरे पास चीनी खत्म हो गई है।अभी लाकर दो।" मनोहर को अनायास ही अनुभूति हुई की वो बुढिया उसपर रौब जमा रही है।उसने गुस्से से उस बुढ़िया के भद्दे से चेहरे की और देखा।उसे देखकर ऐसे लग रहा था मानो वो बुढ़िया वर्षो से नहाई न हो।मनोहर मन में बुढ़िया को गालियां देते हुए तेजी से अपने कमरे से बाहर निकल गया।थोड़ी देर बाद वो चीनी लेकर वापिस लौटा।रात के दस बजे थे।मनोहर अपने कमरे में टहल रहा था।वो मन में कुछ सोच रहा था।उसके मन में कुछ तो चल रहा था।अनायास वो अपने आप से ही बुदबुदा पड़ा "हत्या।" ये बोलते ही वो खुद थोड़ा सा डर गया । उसके वक्षस्थल में भय सा पैदा हो गया। वो सोचने लगा की अगर वो बुढ़िया मर जाए तो इस घर पर उसका कब्जा हो जाएगा। उस बुढ़िया के बारे में पूछने वाला कोई नही है।उसने मन में सोचा"वो बुढ़िया अस्सी वर्ष की होगी,उसका पिंजर अब अनसक्त हो चुका है,शरीर जवाब दे गया है,वो वैसे ही मरने वाली है,क्यों न मैं ही उसे मार दूं।" ये सोचते हुए वो थोड़ा सा डर गया।उसे समझ में नही आ रहा था की जी वो सोच रहा है वो सही है या गलत।वो कंपकंपाने लगा । उसने फिर से उस बुढ़िया के बारे में सोचा।उस बुढ़िया ने मुझे अपना नौकर बना रखा है।बुढ़िया का स्मरण करते ही उसके हृदय में ईर्ष्या का ज्वार सा उमड़ पड़ा।ईर्ष्या इंसान से कुछ भी करवा सकती है फिर हत्या तो बहुत मामूली सी बात है।मनोहर ने अपनी कलाई घड़ी की और नजर दौड़ाई रात के बारह बजने वाले थे।मनोहर ने कुछ सोचते हुए कंपकंपाते हाथो से तकिया उठाया और बुढ़िया के कमरे की और चला गया । उसने कमरे से बाहर निकलकर चारों और नजर दौड़ाई।एक भयानक सा ध्वांत चारों और छाया हुआ था ।एक अजीब सी खामोशी सब और विराजमान थी।वो बुढ़िया तक पहुंचा।वो अपने कमरे में एक टूटी हुई खाट पर लेटी हुई थी।वो बुढ़िया गहरी नींद में सोई हुई थी।उसने बुढ़िया के चेहरे की और नजर दौड़ाई ।उसके चेहरे पर जीवन भर की पीड़ाओं की सलवटे साफ नजर आ रही थी।उसकी बंद आंखों से भी मानो आंसू छलक रहे हो।पर ये भाव मनोहर के चेहरे पर कोई जादू न कर सके।वो कुछ सोचने लगा । उसने सोचा था की वो तकिया उस बुढ़िया के मुंह पर रखेगा, सांस लेने में तकलीफ होगी और उस बुढ़िया की जीवन लीला समाप्त हो जायेगी ।वो लोगों से कह देगा की बुढ़िया को रात को हार्ट अटैक आ गया था।वो अब भी भावशून्य सा वहा खड़ा था।उसे कुछ समझ में नही आ रहा था।उसने अब डर पर काबू पाया और धीरे धीरे तकिया बुढ़िया के चेहरे की और बढा दिया।बुढ़िया से आने वाली दुर्गन्ध के कारण उसने अपना नाक बंद कर लिया।वो तकिए को बुढ़िया के चेहरे के पास ले गया।उसके हाथ कंपकंपा रहे थे।अनायास ही उसे उस बुढ़िया का चेहरा अपनी मां के चेहरे जैसा नजर आने लगा।ये अद्भुत मंजर देख वो कुछ क्षण के लिए स्तब्ध सा हो गया मानो उसे लकवा मार गया हो।उसके हाथ से तकिया छूटकर नीचे गिर गया। उसे कुछ भी समझ में नही आ रहा था।उसके हूक शुरू 
हो गई।उसे कुछ भी समझ में नही आ रहा था।वो अपने सुन से शरीर के साथ वापिस अपने के कमरे में गया और बिस्तर पर जाकर औंधे मुंह लेट गया। कुछ सोचते हुए उसकी आंख लग गई। रात को 3:00 बजे मनोहर की आंख खुली। उसने देखा बाहर बहुत तेज बारिश हो रही थी। चारों तरफ एक भयानक सा तिमिर छाया हुआ था। उसे कभी लगता कि उसका कमरा हिल रहा है तो कभी लगता की सारी धरती ही हिल रही है। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। उसने कंपकंपाते हुए शरीर के साथ छत की ओर नजर दौड़ाई। छत की ओर देखते ही उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। छत पर लगी हुई लोहे की पाइप टूट चुकी थी और तेजी से उसकी और कूच कर रही थी।यह दृश्य देखकर उसका पूरा शरीर सुन्न हो गया मानो उसे लकवा मार गया हो। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें ।उसे लगने लगा कि बस कुछ पल और इसके बाद में उसकी जीवन लीला समाप्त हो जाएगी। अनायास किसी ने उसे ज़ोर से धक्का मारा।उसका सिर एक पत्थर से जा टकराया और वो मूर्छित हो गया। उसने कानो मे बुढ़िया की दर्द भरी चीख सुनाई दी।अगली सुबह उसके बिलोचन खुले। वो हिल भी नहीं पा रहा था। उसने देखा सलिल और कुछ गांव के लोग उसके चारों और इक्ट्ठा थे। वे आपस में कुछ बुधबुधा रहे थे।मनोहर को कुछ स्मरण हुआ और उसने अस्पष्ट सी आवाज में सलिल से पूछा "दादी कहां है?" सलिल ये सुनकर मायूस हो गया और उसने बिना कुछ जवाब दिए ऊपर की और इशारा किया।मनोहर की आंखों से आंसू उमड़ पड़े।कुछ लोग एक तरफ हटे। बुढ़िया की लाश लोहे की पाइप के नीचे दबी पड़ी थी।चारों तरफ रक्त बिखरा हुआ था।उस बुढ़िया की आंखे किसी और दुनिया में जागने के लिए सो चुकी थी।वो बुढ़िया गिरते पड़ते इस जीवन से मुक्त हो गई जिस प्रकार वह उम्र भर गिरती पड़ती रही थी।मनोहर ने अपने हाथो से उस बुढ़िया का अंतिम संस्कार किया।मनोहर ने उसकी समाधि के ऊपर एक चबूतरा बनवाया जिस पर उसने लिखा था "ईमानदार दादी मां।"

                          ✍️✍️भूपेंद्र 
                        सिंह रामगढ़िया।

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