DINESH KUMAR KEER 08 May 2023 कविताएँ अन्य 4232 0 Hindi :: हिंदी
डाईनदी की लहरें मेरा एक सूर्योदय डाईनदी की लहरों के साथ ईशान से उठती हुई ऐ उषा की किरणें । इन गालों को भी थोड़ा निखार दे दो । रूठ कर जा रहा है मेरे चेहरे का नूर । ऐ प्रकृति मुझे भी श्रृंगार दे दो । साहिल को थपथपाती सुन हुगली की लहरें । मेरे भी पैजनियों को थोड़ा झंकार दे दो । शोभती है तुम्हारे गले में ये सुनहरी पट्टीयां । मैं भी थोड़ा संवर लूं ये कानों की बाली, ये कुंदन का हार दे दो । ओढ़ा है तूने जो ये रेशमी व्योम का आंचल। बस एक दिन की खातिर ये आंचल उधार दे दो । देख मोड़ रही है रूख बादलों का भी ये मगरूर हवाएं। मैं भी कुछ ऐसा कर पाऊं मुझे भी खुद पर ऐतबार दे दो ।