अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता गठबंधन::
अमेरिकी विदेशमंत्री माइक पोंपियो ने 05 फरवरी 2020 को 27 देशों के अतंराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता गठबंधन बनाने का एलान किया है। यह गठबंधन दुनिया के देशों में घार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करने और उसे मजबूत करने का कार्य करेगा।
अमेरिका ने माना है कि आतंकी व हिंसक गतिविधियों में लिप्त लोग धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाते हैं। चाहे वे इराक में येजिदी समुदाय के लोग हों, नाइजीरिया में ईसाई समुदायी हों, पाकिस्तान में हिंदू, सिख आदि हों, म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमान हों या चीन में उइगर मुस्लिम हो,ं सब देशों में एक-सी स्थिति है।
पोंपियो का कहना है कि हम ईशनिंदा कानून और स्वधर्म त्याग कानून की भत्र्सना करते हैं। ये कानून मनुष्य की आत्मा के साथ अपराध करते हैं। हम चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सभी घार्मिक गतिविधियों के दमनवाले कृत्यों की भी भत्र्सना करते हैं। पोंपियो ने यह भी कहा है कि हम जानते हैं कि चीनी सरकार के दबाव के बावजूद इस गठबंधन में शामिल होने के लिए 27 देश रजामंद हैं। हम उनका शुक्रिया अदा करते हैं। गठबंधन में शामिल प्रमुख देश हैं-आस्टेªलिया, ब्राजील, ब्रिटेन, इजराइल, यूक्रेन, नीदरलैंड, और ग्रीस।
विदेशमंत्री पोंपियो ने कहा है,‘‘यह गठबंधन प्रत्येक मनुष्य की धार्मिक स्वतंत्रता के लिए हर संभव तरीके से कार्य करेगा। प्रत्येक व्यक्ति अपनी धार्मिक मान्यता के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करे, यह गठबंधन की सर्वोच्च प्राथमिकता है। उनका कहना है कि इस समय दुनिया के दस में से आठ लोग अपनी धार्मिक मान्यता के मुताबिक जीवन व्यतीत नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए ऐसे लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बनाने की आवश्यकता हुई।’’
गठबंधन के एलान के साथ ही शामिल देशों के प्रतिनिधियों ने प्राथमिकता के आधार पर कार्य करने का एजेंडा तय करने की प्रक्रिया आरंभ कर दी है।
विदित हो कि पाकिस्तान में लागू ईशनिंदा कानून के तहत धार्मिक अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न की तमाम घटनाएं आएदिन होती रहती हैं। भारत में लागू नागरिकता संशोधन कानून का भी यही आधार है। इस कानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान में धार्मिक रूप से उत्पीड़ित हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई व पारसी समुदायों के लोगों को छह साल निवास के उपरांत भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है।
गौरतलब है कि 29 दिसंबर 1930 में इलाहाबाद में आल इंडिया मुस्लिम लीग के अधिवेशन में मुसलमानों के लिए देश के उत्तर-पश्चिमी इलाके में जिस द्विराष्ट्र के सिद्धांत का बीज अल्लाला इकबाल ने बोया था, वह 15 अगस्त 1947 को तात्कालीन नेताओं की गलती के चलते साकार हो गया।
विभाजन के बाद भारत व पाकिस्तान दो स्वतंत्र देश बनने से जहां पाकिस्तान में 23 प्रतिशत हिंदू व सिख आदि रह गए थे, वहीं भारत में 9 प्रतिशत मुस्लिम समुदायी थे। वर्तमान स्थिति में पाकिस्तान में अल्पसंख्यक घटकर केवल 2-3 प्रतिशत रह गए हैं, जबकि भारत में मुस्लिम समुदाय की संख्या में इजाफा होकर इनकी संख्या 18-19 प्रतिशत हो गई है।
ज्वलंत सवाल यह कि अविभाजित पाकिस्तान में रह गए 23 प्रतिशत अल्पसंख्यक आखिरकार कहां चले गए? सीधा सा जवाब यह कि या तो उन्होंने उत्पीड़न से बचने के लिए धर्म परिवर्तन कर लिया या बहू-बेटियों की इज्जत की रक्षा करते हुए अपने मूल देश भारत में प्रवेश किया या फिर वे मार डाले गए।
1971 के बाद अस्तित्व में आए बांग्लादेश की भी यही तथाकथा है। आशय यह कि पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान, जिन्होंने अपना राष्ट्रधर्म इस्लाम घोषित किया, वहां अन्य धर्मावलंबियों पर जबरिया अत्याचार व उत्पीड़न आम बात हो गया। इसलिए वे जान व आबरू बचाकर भारत की शरण में आकर शरणार्थी बन गए। एक संजीदा सवाल यह भी कि भारत की आजादी से इन बदनसीबों को क्या हासिल हुआ?
संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रपट के अनुसार, चीन में लगभग 10 लाख उइगर मुसलमानों को हिरासत शिविरों में रखा गया है। उनपर अत्याचार होता है। न्यूयार्क स्थित एक मानवाधिकार संगठन ने 2018 में बीजिंग पर शिनजियांग प्रांत के उइगर मुसलमानों के खिलाफ संस्थागत तौर पर मानवाधिकार उल्लंधन का आरोप लगाया था। चीन इससे इंकार करता हुआ इन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र में रखने की बात बताता रहा है।
दूसरी बात यह कि जो पाकिस्तान कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने से कश्मीरी मुसलमानों की आजादी का हनन बता रहा था; भारतीय मुसलमानों को भड़काऊ भाषण देकर भारत में बगावत की साजिशें रच रहा था और दुनियाभर में भारत के खिलाफ दुष्प्रचार में लगा हुआ है; वह चीन में उइगर मुसलमानों और म्यांमार में रोहिंग्याओं के खिलाफ होनेवाले अत्याचार पर चुप्पी साधे रहता है।
धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए बने 27 देशों के अंतरराष्ट्रीय गठबंधन से पाकिस्तान सहित चीन व अन्य दोमुंहे देशों का दोहरा चेहरा बेनकाब होगा। यदि ऐसा हुआ, तो यह नव गठबंधन भारत के लिए नई उम्मीदें लेकर आएगा।
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