संदीप कुमार सिंह 03 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4691 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) मचल रही है वादि, दामन में रख लाज। कल किसने देखा यहां, जी लें खिल कर आज।। कल किसने देखा यहां,वर्तमान पर नाज। हंसते गाते रह यहां, और करें सब काज।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....