मोती लाल साहु 12 May 2023 शायरी समाजिक मैं परमानंद के आगोश में था, जीवन की धारा में- बहता गया कुछ इस तरह से बहता चला गया-इस जहां में छलकते जाम- अमृत रस से भरे पड़े थे। 9382 0 Hindi :: हिंदी
जीवन की- धारा में बहता गया,, कुछ इस- तरह से बहता चला गया, उस जहां में छलकते जाम अमृत रस से भरे पड़े थे मैं परमानंद के आगोश में था..!! -मोती