संदीप कुमार सिंह 04 Aug 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4953 0 Hindi :: हिंदी
सर्वोदय हो_सर्वोदय हो, मेरी यह कामना पूर्ण हो। कर जोड़ कर मैं फरियाद कर रहा हूं, अंध विश्वास के खिलाफ़ लड़ रहा हूं। घृणा_द्वेष मानवों में खत्म हो जाए, सिर्फ प्रेम की ही खुशबू चारों और रहे। जीवन में व्याप्त अंधेरा खत्म हो जाए, चाँदनी ही चाँदनी जीवन भर रहे। लब पर शबनम की बूंद हो, आँखों में दूधिया रोशनी हो। धड़कन में प्यार की धुन हो, बेहतर करने की चाहत हो। मुस्कानों से कहने की अदा हो, तूफानों से लड़ने की कला हो। गालों पर हया की लाली हो, होठों पर जादू भरे अल्फाज हो। शिकायत करना छोड़ दो, जो कहना हो मुंह पर कहो। बातों से व्याप्त गिला दूर कर लो, मन न मिले तो रास्ता अलग कर लो। दुनिया बहुत हसीन है, हम सब भी हसीन बन कर रहें। नव उर्जा का संचय करें, उत्साह से जीवन यात्रा तय करें। उपयोगी इतना बनें की, काजल के तरह आँखों में बस जाओ। प्रभावित ऐसे करें की, सुबह_शाम आप ही याद आओ। भ्रम में फंसे लोगों को साथ दें, हाथों को हाथ में लेकर प्यार दें। आइना बनकर सामने आएं, दुनिया सामने आने को तरसे। क्या हुआ किसी ने तेरा नुकसान कर दिया तो, माफ करने की कला सीखें एक हिदायत दें दें। उसमें उलझने से भी कोई फायदा नहीं, भरपाई करने का जुगाड़ करें। सिद्धांत भी अक्सर टूट जाया करते हैं, जीवन में मनमुटाव भी होते ही रहते हैं। तो क्या करेंगे रोने से फायदा नहीं, भूल जाने की कोशिश ही बेहतर होगी। बचपन में जब हम लोग थे, चेहरे पर कभी उदासी तो न आती थी। आज अधेड़ावस्था में उदास चेहड़ा क्यों, फिर से मन बचपन क्यों न कर लें। इच्छाशक्ति को प्रबल जो कर लें, अपनेआप हर पथ गमकने लगते। ऊपरवाला भी खुशी से हंसने लगते। फिर दुआओं की बरसात भी कर देते। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....