संदीप कुमार सिंह 18 Nov 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है।जिसे पाठक गण पढ़कर काफी लाभान्वित होंगे। 6984 0 Hindi :: हिंदी
#विधा:-मुक्तक छंद #"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत" करते नहीं विचार जो,उसे बुद्धि है भ्रष्ट। उल्टे सीधे काम से,करे प्रगति को नष्ट। और गँवाये वित्त निज,बनता बड़ा गरीब- साथी रहे न साथ में,पाता है दृढ़ कष्ट।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:-समस्तीपुर(देवड़ा)
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....