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मां का प्रेम

Bhagyashree Singh 14 Apr 2023 कविताएँ अन्य #मांकाप्रेम#निस्वार्थ प्रेम #मदर्स डे स्पेशल # 11407 0 Hindi :: हिंदी

बनकर साया संग रहती है,
सब कष्ट हमारे सहती है,
बन तरुवर निर्मल ममता का,
छाया प्रमोद की देती है,
सर्वस्व अपना न्योछावर कर,
वह ज्ञान प्रेम का देती है,
ख्वाहिशें दफ़न कर अपनी,
ख्वाबों को हमारे संजोती है,
कर संयोग दो परिवारों का,
उन्हें प्रेम सूत्र में पिरोती है,
बनकर के प्रेम सरिता घर में,
कल कल धारा सी बहती है,
दायित्व पूर्ण करके अपने,
जो मंद मंद मुस्काती है,
कोई और नही "मां" है वो,
जो जीना हमें सिखलाती हैं ।

                                   मेरी कलम से
                                     भाग्यश्री सिंह

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