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शांति

Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक शांति 36281 0 Hindi :: हिंदी

त्यागो व्यर्थ की क्रांति।
बोलो ओम् शांति, ओम् शांति, ओम् शांति।
एक सोम है, एक भानु है, एक व्योम साकार।
एक धरा है, एक वात है, एक ही सृष्टि का आधार।
जिस नौका पर तैर रहे हैं, एक ही हाथ उसकी पतवार।
औरों के हित फूल खिलाएं, क्यों बनें  कंटीली बार।
त्यागो विचार क्लांति।
बोलो ओम् शांति, ओम् शांति, ओम् शांति।
एक धर्म है, एक कर्म है, एक ही लक्ष्य महान।
एक दिव्य की संतान, सारा यह जहान।
ढाई अक्षर बिन अधूरा,  चाहे पढ़ लो वेद क़ुरान।
मृग- नाभि में बसे कस्तूरी, मृग रहे उससे अनजान।
त्यागो देश, धर्म की भ्रांति।
बोलो ओम् शांति, ओम् शांति, ओम् शांति।
मनुज धरा पर, शांति का अधिष्ठाता है।
खुद भी शांति से रहे, औरों को देखना चाहता है।
पुण्य- पथ पर गामी है, ये अतीत बताता है।
अंतर्निहित दुर्बलता से, पथ भ्रष्ट हो जाता है।
भय से, उपजे अशांति।
बोलो ओम् शांति, ओम् शांति, ओम् शांति।
सृष्टि रूपी देह का, देश एक है अंग।
अलग अलग हम सभी अधूरे, पूरे एक दूसरे संग।
शांति का संगीत सुनाएं, लेकर नई उमंग।
प्रेम- डोर में बंध जाएं, ज्यों नभ में उड़े पतंग।
जगाओ दीप, तेल, बाती- सी क्रांति।
बोलो ओम् शांति, ओम् शांति, ओम् शांति।
त्यागो व्यर्थ की क्रांति।
बोलो ओम् शांति, ओम् शांति, ओम,।

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