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पिता पनहा-खुद जलकर संतान पथ सविता होते हैं

Santosh kumar koli 05 Nov 2023 कविताएँ समाजिक पिता -पनहा 11390 0 Hindi :: हिंदी

बाहर से जितने,
मज़बूत दिखते हैं।
अंदर से उतने ही,
क़ायल, कमज़ोर होते हैं।
एक पैसा नहीं जेब,
पैसे -पैसे तक तरसते हैं।
संतान की हर ख्वाहिश,
पूर्ति का जज़्बा रखते हैं।
खुद जलकर संतान पथ
सविता होते हैं।
यही, तो पिता होते हैं।
ऊपर से नारियल,
अंदर मोम के होते हैं।
वैसे हर पिता अलग-अलग,
पर एक क़ौम के होते हैं।
पिता है तो एक इंसान,
पर संतान के लिए, आप, आप होते हैं।

अहो भाग्य संतान के,
जिनके साथ बाप होते हैं।
पूजनीय होकर भी,
पूजयिता होते हैं।
यही, तो पिता होते हैं।
बाहर से ख़ामोश,
अंदर- अंदर रोते हैं।
खुद की मोहर संतान की जेब,
खुद के हाथ रीते हैं।
खाते- बाकी संतान खातिर,
खुद फटी जिंदगी सीते हैं।
जो होता है होने दो,
अभी मेरे बाप जीते हैं।
दिखने में सीधे-सादे,
पर गूढ़ संहिता होते हैं।
यही, तो पिता होते हैं।
पिता होते हैं।

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