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*आज की भावपूर्ण कथा* "*क्रोध का प्रभाव"* 💐प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर....करण सिंह💐

Karan Singh 30 Mar 2023 कहानियाँ धार्मिक Ram/जय श्री राम/धार्मिक महत्व/सपनों का सौदागर.... करण सिंह/ Karan Singh/छत्रपति शिवाजी महाराज की महानता/भक्तरविदास/भक्ति/*आज की भावपूर्ण कथा* "*क्रोध का प्रभाव"* 💐प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर....करण सिंह💐/क्रोध का प्रभाव/जय श्री राम/रामायण/सपनों का सौदागर/करण सिंह/ 13936 0 Hindi :: हिंदी

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐*आज की भावपूर्ण कथा* "*क्रोध का प्रभाव"* 💐प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर....करण सिंह💐
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*क्रोध का प्रभाव*🙏🌹🌹👇👇👇

रामदास  जी रामकथा कहते थे। कथा वह इतनी प्यारी कहते थे कि हनुमान जी भी छिपकर सुनने आते थे—और उन्हें बड़ा मजा आता था कहानी सुनने में। रामदास जिस भाव से कहते थे, जिस अहोभाव से कहते थे—हालांकि हनुमान जी तो प्रत्यक्षदर्शी थे, उन्होंने तो देखी थी कहानी होते, मगर उनको भी सुनने में मजा आता था। रामदास के मुंह से सुनकर उनको भी बहुत—सी बातें पहली दफा दिखाई पड़नी शुरू हुई थीं। थे तो हनुमान जी ही! देखा जरूर होगा, मगर जब रामदास जैसे व्यक्ति अर्थ करें तो नयी—नयी अभिव्यंजनाएं होती हैं। नये फूल खिल जाते हैं। जहां कुछ भी न था वहां मरुद्यान खड़े हो जाते हैं। मरुस्थल मरुद्यानों में बदल जाते हैं। शब्दों में नये-नये काव्य, नये-नये गीत, नये-नये स्वर प्रगट होने लगते हैं।

मगर एक दिन बहुत मुश्किल हो गयी। क्योंकि रामदास जी वर्णन कर रहे थे हनुमान जी का ही, कि हनुमान जी गये सीता से मिलने अशोकवाटिका में और उन्होंने अशोकवाटिका में यह देखा कि चारों तरफ सफेद ही सफेद फूल खिले हुए हैं—चांदनी के, जुही के, चमेली के, सफेद ही सफेद फूल। अशोकवाटिका में सफेद ही सफेद फूल थे। हनुमान जी ही ठहरे! यूं तो वे कम्बल वगैरह ओढ़कर छिपकर बैठें थे कि पूंछ वगैरह दिखायी न पड़ जाए किसी को। खड़े हो गये। भूल ही गए कि हम हनुमानजी हैं और हमको इस तरह बीच में खड़े नहीं होना चाहिये। कहा कि बस, और सब तो ठीक है, यह बात गलत है। रामदास जी जैसे लोग, इस तरह की कोई हरकत करे!…… जैसे यहां कोई हनुमान जी खड़े हो जाएं!…… तो रामदास ने कहा’, चुप! चुपचाप बैठ जा! हनुमान जी से कह दिया कि चुपचाप बैठ जा! रामदास जैसे फक्कड़ों का तो अपना हिंसाब है। वह तो हनुमान जी को क्या, रामचन्द्र जी को कह दें कि चुप! बीच-बीच में नहीं बोलना! शांति रखो!

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐*आज की भावपूर्ण कथा* "*क्रोध का प्रभाव"* 💐प्रस्तुतकर्ता-सपनों का सौदागर....करण सिंह💐
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हनुमान जी ने कहा, अरे, हद हो गयी। कम्बल भी फेंक दिया, कहा कि पहले देखो कि मैं कौन हूं! मैं खुद हनुमान हूं और मुझसे तुम कह रहे हो कि चुप बैठ जा! मैं गया था अशोकवाटिका कि तुम गये थे? कि तुम्हारे पिता जी गये थे? मैं गया था और तुमसे कहता हूं कि फूल सब लाल रंग के थे? सफेद नहीं थे। अपनी कहानी में बदलाहट कर लो! रामदास तरह के लोग तो बड़े अलग ढंग के होते हैं, उन्होंने कहा, तुम हनुमान हो या कोई, तमीज रखो बदतमीजी नहीं चलेगी! उठाओ अपना कम्बल और शांति से बैठ जाओ! और मैं कहता हूं कि फूल सफेद थे और कहानी में फूल सफेद ही लिखे जाएंगे, मेरी कहानी को कोई नहीं बदल सकता। हनुमान जी तो बहुत गुस्से में आ गये। उन्होंने कहा कि मैं नहीं चलने दूंगा; तुम्हें मेरे साथ रामचन्द्र जी के पास चलना पड़ेगा। यह फैसला उन्हीं के सामने होगा। अब तुम मानते नहीं हो और मैं चश्मदीद गवाह हूं और तुम देख रहे हो कि मैं हनुमान हूं। सारी जनता प्रभावित हो गयी कि बात तो ठीक है, हनुमान जी खुद खडे हैं, अब जब ये कह रहे हैं तो यह रामदास को क्या हुआ है? बहक गये हैं क्या? अरे, बदल ले भाई, इतनी-सी बात है! मगर रामदास जैसे लोग बदलते नहीं। चाहे कुछ भी हो जाए! उन्होंने कहा, ठीक है, रामचन्द्र जी के पास चलो, सीता मैया के पास चलो-जहां चलना हो!

हनुमान जी बिठाकर कंधे पर रामचन्द्र जी के पास ले गये। रामचन्द्र ने कहा कि हनुमान, पहले तो तुम्हें वहा जाना नहीं था। और गये अगर तुम तो अपने कम्बल में छिपा रहना था। और अगर तुम्हें बात गलत जंच रही थी तो एकांत में जाकर उनसे बात करनी थी। और फिर मुझसे भी पूछ लेना था, इसके पहले कि विवाद करो। रामदास जैसे आदमी से विवाद नहीं करना चाहिए। अरे, हनुमान जी ने कहा, हद हो गयी! आप भी इस तरह से बोल रहे हो, पक्षपात चल रहा है! न्याय का तो कहीं कोई हिसाब ही नहीं रहा! मैं गया अशोकवाटिका कि आप गये थे, जी? 
न तो आप गये, न ये रामदास का बच्चा गया, कोई कहीं गया? मैं गया था! 
यह तो मेरी भलमनसाहत है कि मैं अभी क्रोधित नही हो रहा हुँ।
हनुमान जी रामदास का हाथ पकड़कर कहा कि चलो जी, सीता मैया के पास चलो! क्यो कि अब तो वही एक गवाह हैं, क्योंकि वे वहां रही थीं। इन प्रभु राम जी को क्या पता? नाहक ही बीच में अड़ंगेबाजी कर रहे हैं। न इनको पता है, न तुमको पता है!

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सीता जी के पास ले गये उनको। सीता ने कहा, हनुमान, शांत हो जाओ, फूल सफेद ही थे! रामदास जैसे आदमी से जिद्द नहीं करनी चाहिए। ये कहते हैं तो सफेद ही थे। हनुमान थोड़े ठंडे हुए कि अब बड़ा मुश्किल हो गया मामला! अब कहां से-और तो कोई गवाह ही नहीं है! अब सीता भी बदल गयीं! जिसको मैं ही बचाकर लाया और इतने उपद्रव किये—क्या—क्या उपद्रव नहीं करने पड़े! कहा—कहा की झंझटें सिर पर नहीं आयीं! —और ये रामदास कौन सा खास काम कर दिया है जिसकी वजह से रामचन्द्र जी भी इसके साथ हैं, सीता जी भी कहती हैं कि ठीक ही कहते हैं, सफेद ही थे। तो हनुमान ने कहा कि  क्या मैं इतना पूछ सकता हूं कि ये सब मेरे साथ अन्याय क्यों हो रहा है? सीता ने कहा, अन्याय नहीं हो रहा है हनुमान, तुम समझे नहीं; तुम इतने क्रोध में थे कि तुम्हारी आंखों में खून भरा हुआ था, इसलिए फूल तुम्हें लाल दिखाई पड़े थे। फूल तो सफेद ही थे। तुम्हारी दृष्टि क्रोध से भभक रही थी, सुर्ख हो रही थीं तुम्हारी आंखें—मैंने तुम्हारी आंखें देखी थीं—आग जल रही थी उनमें, खून उतरा हुआ था, तुम पर खून सवार था, तुम्हें कैसे फूल सफेद दिखायी पड़ते? तुम्हें हर चीज लाल दिखाई पड़ रही थी। रामदास जो कहते हैं, ठीक कहते हैं, फूल सफेद ही थे।

जब दृष्टि एक रंग से भरी हो, तो यह भूल हो जाना स्वाभाविक है। क्रोधित आदमी कुछ देख लेता है, शांत आदमी कुछ और देखता है। विचार से भरा हुआ कुछ देखता है। निर्विचार से भरा हुआ व्यक्ति कुछ और देखता है। यह समाधि का अनुभव है।
तब हनुमान जी नतमस्तक हो गये।
और माता सीता जी को प्रणाम कर विदा लिए।
फिर प्रभु के पास आये और अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी। साष्टांग दण्डवत किये फिर विदा लिए क्योंकि अब उनको क्रोध के प्रभाव के बारे मे पता चल गया था।
🚩जय श्री राम
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