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कर्म की इज़्ज़त

Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक कर्म की इज़्ज़त, सच्ची इज़्ज़त 37261 0 Hindi :: हिंदी

क़यामत आए तो आए, पर इज़्ज़त रहे साफ़।
इस क़ीमत पर बचाकर, क्या कर लेंगे आप?
इज़्ज़त की परवाह करने वाला, कुछ नहीं कर पाता है।
सिमटकर कोने में बैठे, न जीता, न मर पाता है।
पान छोड़, चखे सुपारी कत्थ को।
क्या चाटें इस इज़्ज़त को?
इज़्ज़त की दहलीज़ लांघो, खुलकर कर्म करो।
इज़्ज़त और बढ़ेगी, कर्म लिए न शर्म करो।
शबनम मोती के चक्कर में,रत्नों से खाली झोली।
इज़्ज़त जाए तो जाए, बचे कर्म की चोली।
इज़्ज़त छोड़ो, पकड़ो कर्म सत्त को।
क्या चाटें इस इज़्ज़त को?
इज़्ज़त करो तो कर्म की, साधना कर्म -तुंड की।
इज़्ज़त तो हविष्य है, कर्मयोग के कुंड की।
कर्म धर्म है, कर्म मर्म है, कर्म वर्म जीवन -धात।
कर्मपथ पुण्यपथ, इज़्ज़त की कहां बिसात।
आओ, चखें कर्म लज़्ज़त को।
क्या चाटें इस इज़्ज़त को?

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