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मतलबी मन-मन ही समझता मन के चोर को

Santosh kumar koli 01 Feb 2024 कविताएँ समाजिक मतलबी मन 4280 0 Hindi :: हिंदी

उद्धेग, उद्दंड, उच्छृंखल,
उचित -अनुचित।
कब ऋजु, कब गरब गहेला,
कब तीव्र उत्तेजित।
कब दृढ़निश्चयी,
कब दिग् भ्रमित।
कब रिस, कब उद्धर्ष,
कब सरल संयमित
सयाना है मन,
समझता स्वार्थ को।
सौ तालों में ढूंढता,
निज हितार्थ को।
स्मरण या विस्मरण,
कृत्य कृतार्थ को,
सुना या अनसुना,
नाद आर्त्त को।
तुरंत समझता है,
अपने से कमज़ोर को।
भांपता अपने से,
ज़ोरावर के ज़ोर को।
कब वाक्, कब अवाक्,
पता है ग़मख़ोर को।
मन ही समझता,
मन के चोर को।

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