मोती लाल साहु 04 May 2023 कविताएँ समाजिक एक निगाह आशा से भरी, जहां खेलते बचपन गुजारे थे-जीने मरने की कसमें खाए थे-उन राहों को जहां से तुम को जाते देखा था। 6082 0 Hindi :: हिंदी
एक निगाह आशा से भरी! मुद्दत हो गए- निहारता हूं गांव, के चौबारों को जहां खेलते बचपन गुजारे थे हमने वादा- किया था साथ, निभाने का जीने मरने के कई कसमें खाए थे एक आशा- भरी नज़र ताकती, उन राहों में जहां से तुम को जाते देखा था एक निगाह आशा से भरी! -मोती