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प्यार का बलिदान देना बुरी बात नहीं है

Mohd meraj ansari 20 Sep 2023 कहानियाँ प्यार-महोब्बत प्यार का बलिदान, प्यार, बलिदान, त्याग, प्रेम, अलग होना, प्यार खोना, मोहब्बत, सच्ची मोहब्बत, सच्चा प्रेम, पवित्र प्रेम 4734 0 Hindi :: हिंदी

ये कहानी है प्यार के बलिदान की. दो प्यार करने वाले पंछी अपने माँ-बाप के लिए अपने प्यार को बलि चढ़ा देते हैं. अपने प्यार को अपने दिल में दफन कर देते हैं. हीर-रांझा, लैला-मजनू, शिरीन-फरहाद, मिर्ज़ा-साहेबा, सोहनी-माहीवाल और ना जाने कितने प्रेमी जोड़े के बारे में आपने कहीं सुना या पढ़ा होगा क्यूंकि उनकी प्रेम कहानी अधूरी रह कर भी अमर हो गयी. लेकिन मेरी लिखी हुई इस कहानी का किसी को पता नहीं होगा. चलिए मैं उनकी कहानी आपको बताता हूँ. 
ये आज के ज़माने के प्रेमी थे जिनका प्रेम किसी को पता ना चल पाया था. लड़के का नाम रेहान था और लड़की का शाहिना. लड़का पढ़ाई करता था और अपना खर्चा निकालने के लिए ट्यूशन पढ़ाता था. छोटे बच्चों से लेकर 10वीं तक के लड़के लड़कियाँ उसके पास पढ़ते थे. समय के अनुसार रेहान उन बच्चों के घर जाता था और उन्हें पढ़ाता था. बच्चे भी उसे बहुत इज़्ज़त देते थे क्यूंकि रेहान उनके साथ दोस्त जैसा व्यवहार करता था. सब बहुत अच्छा चल रहा था तभी एक दिन रेहान की एक छात्रा की सहेली उससे मिलने ट्यूशन के समय आई. वो लड़की ही थी शाहिना. शाहिना को अपनी सहेली से पढ़ाई के बारे में कुछ पूछना था तो रेहान ने उन्हे रोका नहीं और पूछने दिया. शाहिना के प्रश्न का उत्तर उसकी सहेली नहीं दे पायी तो उसने रेहान से पूछा. रेहान ने बहुत अच्छे से समझाते हुए उसके प्रश्न का उत्तर दे दिया. उत्तर जानकर शाहिना खुश हुई और उसे खुश देखकर रेहान को भी खुशी हुई और दोनों ने एक दूसरे को मुस्कुराते हुए देखा. बस यही मुस्कुराहट उन दोनों के दिल में जगह बना गयी. शाहिना चली गयी लेकिन रेहान उसकी मुस्कान में खोया रहा. अगले दिन ठीक उसी समय शाहिना फिर टपक पड़ी. एक मामूली सा प्रश्न लेकर वो रेहान से पूछने आई थी. उसका प्रयोजन केवल रेहान की मुस्कान देखना था. उसे देखते ही रेहान मुस्कुरा पड़ा और शाहिना के आने का प्रयोजन पूरा हो गया. शाहिना की सहेली ने उससे पूछा कि आज क्या पूछना है तुम्हें? शाहिना ने अपना प्रश्न उनके आगे रखा तो रेहान ने झट से उन्हे उत्तर समझा दिया. लेकिन आज शाहिना इतनी जल्दी जाना नहीं चाहती थी और रेहान के मन में भी चल रहा था कि वो अभी ना जाए. लेकिन शाहिना की सहेली ने उसे वापस भेज दिया. वो मुंह लटका कर चली गयी. अगले दिन वो नहीं आई. रेहान का मन नहीं लग रहा था. ये देख कर उसकी छात्रा समझ गयी कि बात क्या है. उसने कुछ कहा नहीं और अगले दिन खुद ही शाहिना को ट्यूशन के समय बुला लिया. दोनों का चेहरा एक दूसरे को देख कर खिल उठा. दोनों मन-ही-मन एक-दूसरे को पसंद करने लगे थे. शाहिना ने बोला कि मुझे पढ़ाई में कभी-कभी परेशानी होती है तो मै हर बार आपके पास नहीं आ सकती हूँ. ये सुन कर शाहिना की सहेली समझ गयी कि उसे रेहान का फोन नंबर चाहिए जिससे वो रेहान से बात कर सके. उसने कहा कि मैं तुम्हें सर का नंबर दे दूंगी तो उनसे अपनी पढ़ाई के बारे में पूछ लेना. इस तरह शाहिना को रेहान का नंबर मिल गया. अगले दिन वो इस कशमकश में थी कि फोन करूँ या नहीं और रेहान इस इंतज़ार में था कि शाहिना का फोन कब आएगा. दिसम्बर का महीना था. दिन छोटे होते थे. दिन जल्दी ढल गया. शाम को ट्यूशन के समय फिर से दोनों की मुलाकात हुई. शाहिना बोली मुझे एक प्रश्न पूछना था. रेहान बोला कि फोन कर लेती. शाहिना समझ गयी कि रेहान उसके फोन आने का इंतजार ही कर रहे थे. उसने कहा कल फोन करूंगी. अगले दिन सब से छिप कर शाहिना ने रेहान को फोन किया. अभी बात शुरू भी नहीं हो पायी थी कि तभी शाहिना का भाई आ गया और उसने फोन काट दिया. फोन काटने पर रेहान कुछ समझ ना सका और अपनी तरफ से फोन लगाने लगा. शाहिना घबराहट में फोन उठा कर बोली आपने गलत नंबर लगा दिया है और फोन काट दी. रेहान सोचता रह गया कि आखिर उसने ऐसा क्यूँ किया? शाम को ट्यूशन के समय दोनों की फिर से मुलाकात हुई तो उस समय के बारे में पूछने पर सारी बात पता चली. दोनों हँसे फिर शाहिना वापस अपने घर चली गयी. अगले दिन दोनों में बात होने लगी. 4 जनवरी को रेहान ने अपने दिल की बात शाहिना को कह दी. दोनों में प्यार का इज़हार हुआ. दोनों रोज़ घंटों बातें करने लगे. अपनी पसंद-नापसंद से लेकर अपनी दिनचर्या तक एक-दूसरे को बताया. उसके बाद रोज़ दिन भर की हुई घटना बताते. रेहान भोर में जल्दी उठ कर दौड़ने के लिए अपने दोस्त के साथ जाता था. दिन भर आलस में पड़ा रहता. कभी पढ़ाई कर लेता तो कभी सो जाता. शाम को ट्यूशन जाता तो कभी-कभी दोनों की मुलाकात भी होती. अब दोनों रात में बात करने लगे थे. रात भर बात करने के बाद भोर में रेहान दौड़ने जाता. रात में उसे सोने का बिल्कुल समय नहीं मिलता था. इस वजह से वो दिन भर सोता था. घर वाले परेशान रहते थे कि आखिर रेहान को हुआ क्या है जो वो इतना सोता है. कहीं सेहत तो नहीं बिगड़ गयी है. लेकिन उन्हें क्या पता था कि रेहान तो प्यार का परवान चढ़ रहा था. घर वालों की नज़र में बुरा ना बन जाए इसके लिए वो माँ की मदद करने लगा खाना बनाने में. लेकिन खाना बनाना भी उसे नहीं आता था. उसके भाई कहते कि अपनी रोटियाँ तुम ही खाना. क्यूंकि उसकी रोटियाँ थोड़ी देर में ही चमड़े जैसी हो जाती थीं.
 ऐसे ही काफी दिन चला फिर दोनों ने सोचा कि शादी करने के लिए घर वालों को कैसे मनाया जाये. उनके दिमाग में ये बातें घूमने लगीं. घर वालों की नज़र मे तो रेहान वैसे भी गलत बन चुका था क्यूंकि माँ-बाप की कोई बात उसी समय नहीं मानता था. भले ही कोई काम करने को उसे कहा जाए लेकिन उसी समय नहीं करता था और टाल देता था फिर बाद में डांट खा कर कर देता था. ऐसे में वो अगर घर वालों से अपने प्रेम प्रसंग की चर्चा करता तो उसकी खातिरदारी तो तय थी. शाहिना तो कहती थी कि रेहान को ही अपने घर वालों को मना समझा कर उसके घर शादी का प्रस्ताव लाना होगा. अब रेहान का दिमाग काम करना बंद किया तो उसने अपने भाई को ये बात बतायी और बोला कि कुछ भी करो लेकिन हमारे माँ - बाप को मनाओ. मै शाहिना से ही शादी करूंगा किसी और से नहीं. भाई ने सोचा कि अब स्थिति गंभीर हो चुकी है. उसने माँ से बात की इस बारे में और पिता जी से बात करने को कहा. उस दिन उसके पिता काम के तनाव में थे और बहुत ज्यादा गुस्से में थे. माँ ने सोचा कि इस बात के लिए ये समय सही नहीं है. भाई ने सारी बातों को समझा और सोचा कि क्या किया जा सकता है तो उसे कोई रास्ता नज़र नहीं आया. फिर भाई ने ये फैसला किया कि रेहान को समझाना पड़ेगा कि इस शादी की बात करने में कितनी परेशानी आ सकती है. सब सोच समझ कर उसने रेहान को फोन किया और उससे बोला कि भाई उस लड़की को भूल जाओ क्यूंकि हम अभी अपनी ज़िन्दगी में किसी अच्छे स्तर पर नहीं पहुँच पाए हैं. घर की स्थिति भी नाज़ुक है. पिताजी की मेहनत की कमाई से घर चल रहा है. काम का तनाव उन्हें रहता ही है. हम से उन्हें बहुत उम्मीदें हैं और उन उम्मीदों को हम पूरा करने लायक नहीं हुए हैं. अब ऐसे में यह प्यार का मामला पिताजी के सामने गया तो वो घर में कोहराम मचा देंगे. उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाएगा और वो सारा गुस्सा छोटे भाईयों और माँ पर उतारेंगे. ये सब बातें सुन कर रेहान तो समझ गया कि उसके 2 दिनों के प्यार के लिए वो अपने माँ - बाप के वर्षों के प्यार को नकार नहीं सकता. लेकिन दुविधा तो यह थी कि वो यह बात शाहिना को कैसे समझाएगा. वो ना मानी और ज़िद में उसने कुछ गलत काम कर लिया तो सब को पता चल जाएगा और समाज में उनके घर की इज्जत चली जाएगी. फिर तो दोनों ना घर के रहेंगे और ना घाट के. ना जाने वो समझेगी या नहीं कि रेहान क्या कहना चाहता है. आखिर किस वजह से वो अपने प्यार को भुला देना चाहता है. ये सब सोच कर रेहान अपने भाई से इस बारे में बोलता है तो भाई कहता है कि अगर तुम नहीं बोल सकते तो मैं बोल दूँगा लेकिन रेहान को लगा इस बात को रेहान खुद समझाए तो बेहतर होगा क्यूंकि शाहिना किसी और की नहीं सुनेगी. उसके भाई ने कहा कि उस लड़की को समझा देना कि अब तुम दोनों की शादी नहीं हो सकती. हो सके तो एक - दूसरे को भूल जाओ. रेहान ने हामी भरी लेकिन कैसे कहेगा यह सोच - सोच कर उसे 2 दिन तक नींद नहीं आई. तीसरे दिन जब शाहिना का फोन आया तो रेहान ने उसे अपने तरीके से समझाया. लेकिन कुछ ऐसा हुआ जिसकी शायद रेहान को उम्मीद भी ना थी. शाहिना बोली मै समझ सकती हूँ. मै एक लड़की हूँ और लड़की के हाथ मे तो उसके बाप की इज्जत होती है. अगर घर वाले नहीं मानेंगे तो हम कोई गलत कदम उठा के उनकी इज्जत मे दाग नहीं लगने देंगे. हम एक - दूसरे को भूल जाएँगे.
जो एक - दूसरे के साथ जीने - मरने की कसमें खाया करते थे उन्होने आज अपनी जिंदगी का इतना बड़ा फैसला लिया था. अपने परिवार की इज्जत के लिए अपने प्यार को भुला दिया लेकिन कोई गलत कदम नहीं उठाया. बस दुनिया की नज़र मे दूरी बना लिया था लेकिन दिल से दोनों हमेशा जुड़े रहे क्यूंकि प्यार तो भुलाए नहीं भूलता. बात करना बंद हो गया लेकिन प्यार तो दिल के किसी कोने मे दबा रह गया था. परिवार के प्यार के लिए उन्होने अपने प्यार का बलिदान दे दिया लेकिन परिवार की इज्जत पर कोई दाग नहीं लगने दिया. अब उनके पास समय था कि वो अपने माँ - बाप की सेवा करते. परिवार के साथ खुशी से रहते. क्यूंकि उनका जो समय बात करने में जाता था वो अब बचने लगा था. अब उन्होने अपने प्यार को भुला के अपने - आप को सुधारने की कोशिश की. आगे जा कर दोनों ने अपने घर वालों की पसंद से शादी की और अपनी ज़िन्दगी को बेहतर बना लिया. उन्हे लगता था कि उनके माँ-बाप को प्यार की समझ कहाँ होगी. उन्होने कभी किसी से प्यार थोड़ी ना किया होगा जो हमारे प्यार को समझेंगे. लेकिन वो गलत थे. उन्हे इस बात की समझ नहीं थी कि वो उनके माँ - बाप हैं. उनसे अच्छा अपने बच्चों को और कौन समझ सकता है. बच्चों का भला तो केवल उनके माँ - बाप ही चाहते हैं. ये बात उन्हे काफी समय बाद समझ आई लेकिन वो कहते हैं ना कि "देर आए दुरुस्त आए". बस दोनों को देर से समझ आया लेकिन समझ आया तो सही.
माना कि उनका प्यार शादी तक नहीं पहुंचा लेकिन जिस वजह से उन्होने अपने प्यार का बलिदान दे दिया वो वजह मायने रखती है. वो वजह थी परिवार का मान - सम्मान. उसके बनाए रखने के लिए हमें किसी भी हद तक गुज़र जाना चाहिए. लेकिन ज़िन्दगी में ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे हमारे माँ - बाप के दिए संस्कारों पर कोई उंगली उठा सके. इससे तो अच्छा है कि हम कहीं जाकर डूब मरें. मै आपको डूब मरने के लिए प्रोत्साहित नहीं कर रहा हूँ बल्कि ये बताना चाहता हूँ कि परिवार के मान - सम्मान से बढ़ कुछ नहीं और माँ - बाप से ज्यादा प्यार हमें और कोई नहीं कर सकता. उम्मीद करता हूँ कि यह आज के युग की अधूरी प्रेम कहानी को अच्छी तरह से समझ कर आज की युवा पीढ़ी कोई कदम उठाएगी. शायद ये कोई अमर प्रेम कहानी तो नहीं है लेकिन यह कहानी हमे जीवन के महत्व से लेकर माँ - बाप के प्यार को दर्शाती है. और इस प्यार के लिए 2 दिनों के प्यार का बलिदान देना बुरी बात नहीं है.

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