नरेंद्र भाकुनी 20 Feb 2024 कहानियाँ देश-प्रेम 🇮🇳, south Africa🇿🇦🌍 Instagram,India, गढ़वाल, uttrakhand, story, war, world War, मुगल, वीर 4202 0 Hindi :: हिंदी
""एक कहानी ,आज कहानी उस राजा की सुंदर रानी। इसको कहते नकटी रानी यह इतिहास पुरानी। आज सुनाऊं ये गाथा है उस वीरांगना की कहानी। गढ़वाल की रानी कर्णावती थी ये सबकी जुबानी।"" भारतीय इतिहास में जब रानी कर्णावती का जिक्र आता है तो फिर मेवाड़ की उस रानी की चर्चा होती है जिसने मुगल बादशाह हुमांयूं के लिये राखी भेजी थी। इसलिए रानी कर्णावती का नाम रक्षाबंधन से अक्सर जोड़ दिया जाता है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि इसके कई दशकों बाद भारत में एक और रानी कर्णावती हुई थी और यह गढ़वाल की रानी थी। इस रानी ने मुगलों की बाकायदा नाक कटवायी थी और इसलिए कुछ इतिहासकारों ने उनका जिक्र नाक कटी रानी या नाक काटने वाली रानी के रूप में किया है। रानी कर्णावती ने गढ़वाल में अपने नाबालिग बेटे पृथ्वीपतिशाह के बदले तब शासन का कार्य संभाला था जबकि दिल्ली में मुगल सम्राट शाहजहां का राज था। शाहजहां के कार्यकाल के दिवसों में बादशाहनामा या पादशाहनामा लिखने वाले अब्दुल हमीद लाहौरी ने भी गढ़वाल की इस रानी का जिक्र किया है। गढ़वाल के कुछ इतिहासकारों ने हालांकि पवांर वंश के राजाओं के कार्यों पर ही ज्यादा गौर किया और रानी कर्णावती के पराक्रम का जिक्र करना उचित नहीं समझा। ""हे गढवाल की रानी, तेरी अमिट कहानी प्यास बुझाए जनमानस का, ज्यों गंगा का पानी। इतिहास भी आदर करता है, जैसे खसदेश का वास तू नारी की ज्योति है, पवार वंश का इतिहास।"" रानी कर्णावती के बारे में मैंने जितनी सामग्री जुटायी। उससे यह साफ हो जाता है कि वह पवांर वंश के राजा महिपतशाह की पत्नी थी। यह वही महिपतशाह थे जिनके शासन में रिखोला लोदी और माधोसिंह जैसे सेनापति हुए थे जिन्होंने तिब्बत के आक्रांताओं को छठी का दूध याद दिलाया था। माधोसिंह के बारे में गढ़वाल में काफी किस्से प्रचलित हैं। पहाड़ का सीना चीरकर अपने गांव मलेथा में पानी लाने की कहानी भला किस गढ़वाली को पता नहीं होगी। कहा जाता था कि माधोसिंह अपने बारे में कहा करते थे, ''एक सिंह वन का सिंह, एक सींग गाय का। तीसरा सिंह माधोसिंह, चौथा सिंह काहे का। '' इतिहास की किताबों से पता चलता है कि रिखोला लोदी और माधोसिंह जैसे सेनापतियों की मौत के बाद महिपतशाह भी जल्द स्वर्ग सिधार गये। कहा जाता है कि तब उनके पुत्र पृथ्वीपतिशाह केवल सात साल के थे। इसके 1635 के आसपास की घटना माना जाता है। राजगद्दी पर पृथ्वीपतिशाह ही बैठे लेकिन राजकाज उनकी मां रानी कर्णावती ने चलाया। "" माधो सिंह जी चले गए, उस बैकुंठ के पार । महपति शाह भी छोड़ चले, गए स्वर्ग सिधार।"" इससे पहले जब महिपतशाह गढ़वाल के राजा थे ।जब शाहजहां का राज्याभिषेक हुआ था। जब वह गद्दी पर बैठे तो देश के तमाम राजा आगरा पहुंचे थे। महिपतशाह नहीं गये। इसके दो कारण माने जाते हैं। पहला यह कि पहाड़ से आगरा तक जाना तब आसान नहीं था और दूसरा उन्हें मुगल शासन की अधीनता स्वीकार नहीं थी। कहा जाता है कि शाहजहां इससे चिढ़ गया था। इसके अलावा किसी ने मुगल शासकों को बताया कि गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर में सोने की खदानें हैं। इस बीच महिपतशाह और उनके वीर सेनापति भी नहीं रहे। शाहजहां ने इसका फायदा उठाकर गढ़वाल पर आक्रमण करने का फैसला किया। कर्णावती ने कहा _"" ये मुगलों की जागीर नही है,जो उनको विरासत मिल जाए, ये और उन वंशजों का सिंहासन है, जिन्होंने अपनी भूमि के लिए प्रजा का पालन किया अपनी वीरता से 52 गड्ढों को जीता था क्या हम ऐसे ही इन मुगलों को दे देंगे मरते दम तक नहीं....। कहते हैं कि सेनापति नजाबत खान को पहले महारानी में किसी की हाथ एक लाख का नजराना पेश किया वह खुश हो गया और पहाड़ों के नीचे अपना शिविर अर्थात खेमा लगाए बैठा था कि कब यह हमें 10 लाख अलग से नजराना देंगे। यह भी एक राजनय सिद्धांत का अंदर आता है शत्रु को पहले कुछ लालच देना, फिर किसी भी तरह से सर्वप्रथम शत्रु को कमजोर कर देना लेकिन शत्रु को पता न चले। रानी का आदेश था कि _"" ऊपर से नदियों का पानी बंद कर दो, कृत्रिम रुप से पर बांध से पानी को रोक लो ताकि मुगल सेना को पानी भी न मिल सके। इधर-उधर से आए हुए राहत सामग्री हिना मिल पाए। ऊपर के पहाड़ों पर बड़े-बड़े पत्थर एकत्र किया जाए ताकि गुरिल्ला युद्ध नीति से गढवाल सेना युद्ध कर सके।"" उन्होंने अपने एक सेनापति नजाबत खान को यह जिम्मेदारी सौंपी। निकोलो मानुची ने अपनी किताब में शाहजहां के सेनापति या रानी का जिक्र नहीं किया है लेकिन उन्होंने लिखा है कि मुगल जनरल 30 हजार घुड़सवारों और पैदल सेना के साथ गढ़वाल की तरफ कूच कर गया था। गढ़वाल की रानी कर्णावती ने उन्हें अपनी सीमा में घुसने दिया लेकिन जब वे वर्तमान समय के लक्ष्मणझूला से आगे बढ़े तो उनके आगे और पीछे जाने के रास्ते रोक दिये गये। गंगा के किनारे और पहाड़ी रास्तों से अनभिज्ञ मुगल सैनिकों के पास खाने की सामग्री समाप्त होने लगी। उनके लिये रसद भेजने के सभी रास्ते भी बंद थे। मुगल सेना कमजोर पड़ने लगी और ऐसे में सेनापति ने गढ़वाल के राजा के पास संधि का संदेश भेजा लेकिन उसे ठुकरा दिया गया। मुगल सेना की स्थिति बदतर हो गयी थी। रानी चाहती तो उसके सभी सैनिकों का खत्म कर देती लेकिन उन्होंने मुगलों को सजा देने का नायाब तरीका निकाला। रानी ने संदेश भिजवाया कि वह सैनिकों को जीवनदान देन सकती है लेकिन इसके लिये उन्हें अपनी नाक कटवानी होगी। सैनिकों को भी लगा कि नाक कट भी गयी तो क्या जिंदगी तो रहेगी। मुगल सैनिकों के हथियार छीन दिये गये थे और आखिर में उनके एक एक करके नाक काट दिये गये थे। कहा जाता है कि जिन सैनिकों की नाक काटी गयी उनमें सेनापति नजाबत खान भी शामिल था। वह इससे काफी शर्मसार था और उसने मैदानों की तरफ लौटते समय अपनी जान दे दी थी। ""अचानक रानी कर्णावती ने मुगल की सेना पर ऊपर से पत्थर फेंकने शुरू कर दिए और मुगल की सेना आधी से ज्यादा कुछ लीजा चुकी थी नजाबत खान भाग गया। कुछ मुगल सैनिकों को गढवाल की सेना ने धूल चटा दी, 800 सैनिक गिरफ्तार कर लिए गए और उनकी नाक काटकर मुगल दरबार भेज दिया गया।"" टक्कर किससे लेते हो, वो तो शेरनी थी गंभीर। युग_ युगों में एक ही नारी, जिसने धारण किया शरीर। उस समय रानी कर्णावती की सेना में एक अधिकारी मित्र बेग हुआ करता था जिसने मुगल सेना को परास्त करने और उसके सैनिकों को नाक कटवाने की कड़ी सजा दिलाने में अहम भूमिका निभायी थी। यह 1640 के आसपास की घटना है। कुछ इतिहासकार रानी कर्णावती के बारे में इस तरह से बयां करते हैं कि वह अपने विरोधियों की नाक कटवाकर उन्हें कड़ा दंड देती थी। इनके अनुसार कांगड़ा आर्मी के कमांडर नजाबत खान की अगुवाई वाली मुगल सेना ने जब दून घाटी और चंडीघाटी ( वर्तमान समय में लक्ष्मणझूला ) को अपने कब्जे में कर दिया तब रानी कर्णावती ने उसके पास संदेश भिजवाया कि वह मुगल शासक शाहजहां के लिये जल्द ही दस लाख रूपये उपहार के रूप में उसके पास भेज देगी। नजाबत खान लगभग एक महीने तक पैसे का इंतजार करता रहा। इस बीच गढ़वाल की सेना को उसके सभी रास्ते बंद करने का मौका मिल गया। मुगल सेना के पास खाद्य सामग्री की कमी पड़ गयी और इस बीच उसके सैनिक एक अज्ञात बुखार से पीड़ित होने लगे। ""वीर मर जाते हैं,लेकिन झुका नहीं करते शेरनी को क्यों ललकार ते हो , शेरनी मार जाएगी लेकिन घास नहीं खाएगी।"" नजाबत खान की हालत युद्ध के बाद बहुत ही ज्यादा गंभीर हो गई और उसकी मौत हो गई, क्योंकि नजाबत खान ने उस शेरनी से पंगा ले लिया जो घायल है घायल इसलिए क्योंकि उसके पति की मृत्यु हो चुकी थी। ""खो गई है इस चमन में हार क्यों? क्यों सहे हैं दुश्मन की ललकार क्यों? भूमि है जो उस भरत की जन्मभूमि ना सहेंगे आज हम यलगार क्यों?"" - नरेन्द्र सिंह भाकुनी