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अकड़

Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य अकड़ 7369 0 Hindi :: हिंदी

किस बात कि अकड़ हैं 
जो इतना तू अकड़ती हैं!

शीशे का तेरा बदन 
हाथ लगे तो टूट जाएं 
किस बात की रोष हैं 
जो इतना तू धधकती हैं!!

मैंने तुम को देखा हैं 
छुप छुप शिसक के रोते 
क्या घाव पला हैं सिने में 
जो अगिनशिखा भड़काती हैं!

हुस्न पे गुरुर हैं या जिस्म पे 
ये दोनों ही ढल जायेगा 
किस बात की जिद हैं तुझ में 
जो तू इतना कुपित हैं

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