Alfaaz Hassan 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 26082 0 Hindi :: हिंदी
कैसी सदी ये आई कैसा मोड़ आया है लगता खफा खुदा है, जो ये दौर आया है। क्यू जिंदगी मायूस और परेशान लग रही है जो राहें कभी आबाद थी विरान लग रही हैं जो अक्ले मदं थी कभी हैरान लग रही हैं काला घना अधंकार सा हर ओर छाया है लगता खफा खुदा है जो ये दौर आया है। ना होली न दिवाली ना ईद का कोई चाव है ।नासूर बन रहा क्यू कोरोना का घाव है ना मन्दिर में है पूजा ना ही मसजिद में भी अजान लग रही है। बस चारों तरफ से सिसकता सा शोर आया है लगता खफा खुदा है जो ये दौर आया है ये भूख प्यास पेट की किस ओर ले चली मजबूर और लाचार हम भटके गली गली बसेरा भी दूर है कितनाऔर सूनी सङक व पटरियां शमशान लग रही है । दौर ये समय का हमे किस ओर लाया है लगता खफा खुदा है जो ये दौर आया है। कुदरत को खिलौना समझ जो खेल रहे हो इसीलिए तो दुःख ये सारे झेल रहे हो खामोश थी सहके सितम वो आज पशेमान लग रही है इसीलिए कुदरत ने एसा कहर ढाया है । लगता खफा खुदा है जो ये दौर आया है।