भूपेंद्र सिंह 29 Dec 2023 कहानियाँ प्यार-महोब्बत अजीत सिंह और मंजुलिका की प्रेम गाथा 7877 0 Hindi :: हिंदी
उपन्यास राजकुमारी मंजुलिका भाग - 3 गुमान सिंह फिरोजगढ़ के महल में दूसरी मंजिल पर दूसरा कमरा राजकुमारी मंजुलिका का है तो पहला कमरा मंजुलिका के इकलौते भाई गुमान सिंह का है जिसे सब प्यार से गोलू कहते है क्योंकि उसका चेहरा गोल मटोल सा है, उम्र लगभग 15-16 साल की है, अपनी बहन से बहुत प्यार करता है, शांत स्वभाव का है और कभी भी किसी बात के लिए गुस्सा नही करता। राजकुमारी मंजुलिका अपने कमरे में चुपचाप बैठी कुछ सोच रही है। उसके सामने एक मेज पर खाना रखा हुआ है । एक बर्तन में खीर है, चार रोटी, आलू मटर की सब्जी । और मेज के बिल्कुल सामने मंजुलिका की सबसे अच्छी सखी चारू खड़ी है और राजकुमारी की और न जाने कब से देखे जा रही है। चारू - " देखिए राजकुमारी जी आपने आज सुबह से कुछ भी नहीं खाया है। कुछ तो खा लीजिए।" चारू की बात सुन कर मंजुलिका खड़ी हो जाती है और निराश होकर कहती है। मंजुलिका - " चारू तुमने देखा नही की किस तरह आज मेरा प्यारा कबूतर मिठू गायब हो गया। मुझे तो पूरा यकीन है की ये जरूर उस विनोद सिंह के किए कारनामे है।" चारू - " जी राजकुमारी मुझे तो लगता है उस विनोद सिंह के बच्चे ने जरूर कबूतर को गायब किया है। उसने जरूर कबूतर को आपका खत ले जाते हुए देख लिया होगा।" मंजुलिका - " अब तो हम कुछ भी नहीं कर सकती। आज मैं अपना खत भी दयाल सिंह तक नहीं पहुंचा पाई। न जाने राजकुमार अजीत सिंह पर क्या बीत रही होगी?" चारू - " महाराज ने महल के चारों और सख्त पहरा लगा रखा है। अब तो राजकुमार अजीत सिंह चाहकर भी महल में नहीं घुस सकते।" वे आपस में बातें कर ही रही थी की तभी गुमान सिंह यानी गोलू सिंह वहां पर आ खड़ा हुआ। मंजुलिका - " क्या हुआ गोलू? तुम इस वक्त जहां पर? सब कुछ ठीक तो है ना ?" गोलू - " दीदी कुछ भी ठीक नहीं है । मिठू जंगल में मरा हुआ मिला है। न जाने किसने उस बेजुबान की गर्दन ही काट दी।" ये सुनकर मंजुलिका की आंखो से आंसू टपक पड़े और फिर वो आग बबूला होकर बोली। मंजुलिका - " हम जानते है ये जरूर उस विनोद सिंह ने ही किया है।" गोलू - " दीदी अगर आप कहें तो मैं अभी पेड़ की टहनी की तरह उस विनोद सिंह की गर्दन काट डालूं।" मंजुलिका - " नहीं गोलू , पिताजी के होते हुए हम कुछ भी नही कर सकते और वैसे भी अब तो विनोद सिंह पिताजी का सलाहकार बना बैठा है।" गोलू - " अरे वो क्या खाक सलाह देगा? उससे अच्छा होता की पिताजी मुझे अपना सलाहकार बना लेते। लेकिन दीदी आप फिक्र मत कीजिए। आप देखना अजीत भईया कुछ न कुछ समाधान जरूर कर लेंगे और उस विनोद सिंह को मुंह तोड़ जवाब देंगे।" मंजुलिका - " उम्मीद तो है।" इतना कहकर गोलू जाने लगता है की तभी उसकी मेज पर पड़े खाने पर नज़र चली जाती है। गोलू - " दीदी आपने खाना नहीं खाया?" इससे पहले की मंजुलिका कुछ बोल पाती चारू बोल पड़ी। चारू - " देखिए गोलू जी, आपकी बहना ने आज सुबह से कुछ भी नहीं खाया। अब आप ही कुछ कीजिए।" ये सुनकर गोलू अपनी बहन के पास गया और उसका हाथ अपने सर पर रखकर तेजी से बोला। गोलू - " दीदी आपको मेरी सौगंध है आपको खाना तो खाना ही पड़ेगा। " मंजुलिका - " ( हंसते हुए) ठीक है गोलू मैं खाना खा लूंगी। अब तो खुश।" ऐसे नहीं दीदी मेरे सामने आप अभी खाना खाओ। मंजुलिका - " ओह तो मेरा भाई इन दिनों बड़ा तेज हो गया है।" गोलू - " आप देखना दीदी एक दिन मैं भी अजीत भईया की तरह बहुत बहादुर बनूंगा और एक ही बार से उस विनोद सिंह को काट डालूंगा।" ये सुनकर चारू और मंजुलिका दोनो ही हंसने लगती है। मंजुलिका खाना खाने लगती है। गोलू तेजी से कुछ सोचते हुए कमरे से बाहर निकल जाता है। अब रात होने को आ गई है। विजयगढ़ के किले को अभी भी एक अजीब सी खामोशी ने घेर रखा है। अजीत सिंह कुछ सोचते हुए अपने कमरे में टहल रहा है । देखने से ये अनुमान लगाया जा सकता है की शायद वो किसी का इंतजार कर रहा है। वो बार बार कमरे के दरवाजे की और देख रहा है। इतने में उसका जिगरी यार जगत सिंह कमरे में आ जाता है उसे देखकर अजीत सिंह भी खुश हो उठता है। अजीत सिंह - " आओ जगत सिंह। मैं कब से तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था। कहो क्या खबर है?" जगत सिंह - " राजकुमार अजीत सिंह सिपाहियों का मुआयना लेकर आया हूं। दो सिपाही आपके कमरे के बाहर तैनात है तो दो सिपाही उस खूंखार सिंह के साथ मुख्य दरवाजे पर तैनात है।" अजीत सिंह - " अब तो बुरे फंसे दोस्त, क्या बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं?" जगत सिंह - "सिर्फ एक रास्ता है कुमार।" अजीत सिंह - (हड़बड़ाहट में) "वो क्या है?" जगत सिंह - " मेरी बात को ध्यान से सुनो कुमार। आपके कमरे के बाहर जो दो सिपाही तैनात है , उन दोनों को हम बेहोश कर देंगे। एक को आपके पलंग पर बिस्तर ओढाकर सुला देंगे और एक को पलंग के नीचे दे मारेंगे। अगर कोई आएगा तो उसे लगेगा की आप सो रहे है।" अजीत सिंह - " लेकिन जगत सिंह कमरे के बाहर सिपाहियों को न पाकर किसी को शक हो जायेगा।" जगत सिंह - "ओह ! ये तो मैंने सोचा ही नहीं था।" अजीत सिंह - "अब क्या करें?" जगत सिंह - " मैं अपने भाई दयाल सिंह को बुलाकर लाता हूं। उसकी खोपड़ी कुछ तेज चलती है। वो जरूर अपनी अक्ल के घोड़े दौड़ाकर कोई तरकीब ढूंढ निकालेगा।" अजीत सिंह - "ठीक है तुम जल्दी जाओ और जल्दी आना। तब तक मैं कुछ ब्योंत बनाता हूं।" जगत सिंह कमरे से बाहर निकल जाता है और अजीत सिंह परशान होकर अपने बिस्तर पर बैठ जाता है और राजकुमारी मंजुलिका की प्रेम की यादों में डूब जाता है।। ✍️✍️भूपेंद्र सिंह रामगढ़िया।।