DINESH KUMAR KEER 24 May 2023 कविताएँ अन्य 5657 0 Hindi :: हिंदी
आदेश कहाँ...! प्रार्थना विनत करती थी, मैं भी ज्यों त्यों निज सुख ढूंढा करती थी, मुझ जैसी भाग्य बली का भी क्या ही कहना, मौसम कोई भी हो संघर्ष रहा गहना, सारे तप, त्याग, समर्पण, अर्पण जितने भी थे, तुम गुलाम की श्रेणी में रख भूल गए, हममें-तुममें फ़र्क़ बना का बना रह गया, तुम जो भी बाहें पाए... बस झूल गए, उधर प्रतीक्षा में हम गोधूलि से रात... रात से सूर्योदय काटे... कैसे काटे मत पूंछो... ख़ुद को कितनी करवट बांटे... और तुम...! तुम केवल अनुमान लगाकर रूठे हो, तुम वादों में, रिश्तों में सब तरह झूठे हो...