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आह

Saurabh Shukla 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य Google/ 87163 0 Hindi :: हिंदी

आह 
कौन कहता है ! आह बस आह होती है ।
हर आह में जीवन की एक नई राह होती है ।
बीती भूली बातो को याद कर कर के ये जिंदगी और भयवाह होती है ।
किस्मत बदलेगी इस ताक में ,मेहनत भी नही होती है ।
समय बीतता है कभी दिन तो कभी रात होती है।  
देखते है ये लड़ाई लड़कर किस्मत कब तक सोती है ।।

मंजिल नहीं मिलती,तब तक राहों से मजा लेते है ।
समाते मेहनत की नदी में ,समंदर को मंजिल का अंजाम देते हैं ।।

हर बार टूटने का मतलब , बिखर जाना नही होता ।
देखते हैं ऐ सौरभ तू किस्मत का मारा कब तक रोता ।।
समय ना रुकता, तो तू क्यों रुकता है ।
जो महान बना ,वो कब थकता है । 
उससे पूछो राह में , कितने चुभे पत्थर ।
चुन चुन कर ,उन्ही से आशियाना बनाता है ।।
सोचता जो सिर्फ ,अपने लिए  आम इन्सान बन जाता है ।
किस्मत से लड़कर ,बनाता दूसरों के रास्तों को भी आसान ।
वो महान बन जाता है ।।
         

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