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परीक्षा-चौधरी वीरभान सिंह की परीक्षा

Jitendra Sharma 09 Jul 2023 कहानियाँ समाजिक परीक्षा ,Pariksha, The Exam, Jitendr Sharma, Kahani, Jitendra Sharma Ki Kahaniyan. 8737 0 Hindi :: हिंदी

कहानी- परीक्षा 
शब्द रचना- जितेन्द्र शर्मा 

चौधरी वीरभान सिंह ने भोजन किया व हाथ धोने के लिए नल के पास बनी चौकी पर पहुंचे। उनकी पत्नी सुनयना हाथ में पानी का लोटा लिए हुए आई और अपने पति के हाथ धुलवाने लगी। चौधरी साहब अभी-अभी अपने खेतों से लौटे थे और रोजाना की तरह भोजन करने के बाद घर से लगभग दो सौ मीटर दूरी पर बने अपने घेर में जाने वाले थे। चौधरी साहब ने पहले हाथ धोए फिर कुल्ला किया और फिर  हाथ धोकर मुस्कुराते हुए अपनी पत्नी की ओर देखते हुए बोले-मैं घेर में जा रहा हूं कोई काम हो तो बताना। ?

मुझे माही के बारे में आपसे कुछ बात करनी थी। 

माही के बारे में, वह है कहां दिखाई नहीं दे रहा? चौधरी चौधरी साहब ने अपने बेटे महेंन्द्र के बारे में पूछा जिसे गांव में सभी माही कहते थे।

वह अभी कुछ देर पहले खाना खाकर अपने दोस्तों से मिलने गया है। सुनयना ने उत्तर दिया।

हां कहो, क्या कहना है? 

उसने एक लड़की पसंद कर ली है, कह रहा था कि वह उससे  शादी करना चाहता है। सुनयना ने नज़रें झुकाकर धीमे से कहा।

लड़की कौन है? और कहां की रहने वाली है? उसने कुछ बताया। चौधरी ने गम्भीर स्वर में पूछा।

माही बता रहा था कि लड़की भी इंजीनियर हैं और उसकी ही कम्पनी में नौकरी करती है। और यहीं किसी पास के गांव की रहने वाली है।

ठीक है। हमें तो शादी करनी ही है, यदि उसने लड़की पसंद कर ली है तो और अच्छा। वैसे भी अब वह समझदार हो चुका है। उसे पसंद है तो हमें क्या आपत्ति है। हमें तो उसकी खुशी में ही खुशी है।चौधरी साहब मुस्करा कर बोले।

माही कह रहा था कि लड़की के रिस्तेदार आपसे रिस्ते की बात करने के लिये आ रहे हैं। आप आज कहीं बाहर मत जाइये। सुनयना ने पति से आग्रह किया। 

ठीक है! मैं आज गांव में ही रहूंगा। तुम भी मेहमानों के लिये जलपान की व्यवस्था कर लेना। चौधरी साहब ने कहा और घर से निकल गये।

चौधरी वीरभान सिंह खुले मस्तिष्क वाले उदार व्यक्ति थे। वह अपने गांव के निकटवर्ती नगर के एक प्रतिष्ठित कृषि महाविद्यालय  में प्रवक्ता पद से सेवानिवृत्त होकर अपने गांव में बड़े सुख और सम्मान के साथ जीवन व्यतीत कर रहे थे। उनके पास पर्याप्त कृषि भूमि थी, जिसे नौकरों के सहयोग से सम्हाल रहे थे। सेवानिवृत्ति के बाद उनका अधिक समय सामाजिक कार्यों में व्यतीत होता है। संतान के रूप में उन्हें परमात्मा ने दो बेटियां व एक पुत्र का दायित्व दिया। बेटियों को पढा- लिखाकर उनका विवाह कर अपने दायित्व से उऋण हो चुके थे। बेटा छोटा था जो इंजिनियर की पढ़ाई कर एक अच्छे संस्थान में नौकरी कर रहा था। बेटे का नाम महेंद्र सिंह था जिसे प्यार से माही बुलाया जाता था। वह छुट्टियों में घर आ जाया करता और पिता के कार्यों में हाथ बटाता। इस प्रकार चौधरी वीरभान सिंह का परिवार गांव में सर्वाधिक भाग्यशाली परिवारों में अग्रणी माना जाता था।



चौधरी को बहुत अधिक प्रतिक्षा नहीं करनी पड़ी। दो घण्टे व्यतीत हुए होंगे कि चार व्यक्तियों का आगमन उनके घेर में हुआ। गांव का ही एक युवक उन्हें वहां पहुंचाने आया था। वह युवक उन्हें वहां पहुंचाकर वापस चला गया। चौधरी ने उठकर उनकी अगवानी की और अपने साथ बरामदे तक ले आये जहां पर कुछ मूढ़े व दो चारपाई पहले से ही बिछाई गई थी। गांव के  दो व्यक्ति पहले से ही वहां उपस्थित थे और अतिथियों के आने से पहले चौधरी के साथ बातों में तल्लीन थे। उन्होंने भी उठाकर अतिथियों का स्वागत किया और उनके बैठ जाने पर वे पुनः अपने स्थान पर बैठ गये। चौधरी ने नौकरों को आवाज लगाई और अतिथियों के लिये पानी आदि की व्यवस्था करने के लिये कहा। नौकर अपने काम में लग गये।

अभिवादन और कुशल क्षेम के बाद बात शुरू हुई। उन चारों में से एक व्यक्ति ने  परिचय कराते हुए कहा- चौधरी साहब मेरा नाम राजबीर सिंह है, सरकारी स्कूल में सहायक अध्यापक हूं। ये तीनों रिस्ते में मेरे भाई हैं। हम रजापुर गांव के रहने वाले हैं। मेरी बेटी ने इन्जिनियरिंग की पढ़ाई की है और वह एक कम्पनी में आपके बेटे के साथ ही नौकरी करती है। कल जब वह वीकेंड की छुट्टी पर घर आई तो उसने बताया कि वह आपके बेटे को पसंद करती हैं और उससे शादी करना चाहती है।
वह कुछ देर रूके और अपनी बात की प्रतिक्रिया देखने के लिये चौधरी वीरभान के चेहरे को निहारने लगे। उसका आशय समझ चौधरी बोला- राजबीर सिंह जी नौकर जलपान की व्यवस्था के लिये गये हैं। पहले आप जलपान करें उसके बाद आराम से बात करते हैं।


राजबीर सिंह ने अपने साथियों की ओर देखा और चुप हो गये। उनके चेहरे पर एक छण के लिये बेबसी के भाव उभरे जिसे छिपाने के लिये वह दूसरी ओर देखने लगे। चौधरी वीरभान सिंह ने यह सब देखा और समझ गये की वह कुछ कहना चाहते हैं अतः पूछा-राजबीर सिंह जी कि आप संभवतः तत्काल कुछ कहना चाहते हैं किन्तु संकोचवश कह नहीं पा रहे हैं। 

राजबीर सिंह को जैसे सहारा मिला है वह बोले- चौधरी साहब मेरी बात अधूरी रह गई थी। आप अगर आज्ञा दें तो मैं अपनी बात पूरी करूं। उसके बाद आप जैसा चाहें निर्णय करें।

ठीक है कहिये! चौधरी ने उत्सुकता प्रकट की।

राजबीर सिंह ने गहरी सांस ली और बोले- मेरे तीन बच्चे हैं चौधरी साहब, सबसे बड़ी बेटी है और फिर दो बेटे जोकि अभी अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। बेटी के प्यार के कारण मैं आपके पास एक निवेदन लेकर आया हूं। मैं किसी भी प्रकार आपकी बराबरी न कर सकूंगा। मेरी और आपकी जाति भी अलग है। हम दलित जाति से है। मेरी बस आपसे यही प्रार्थना है कि यदि आप मेरी बेटी को अपना लें तो मेरा सौभाग्य होगा और यदि आप ऐसा न कर सकें तो अपने बेटे को समझा लें वह मेरी बेटी के रास्ते में न आये। 

राजबीर सिंह ने अपनी बात पूरी की। उसका गला भर्रा गया व आंखों में आंसू भर आये। उधर चौधरी वीरभान सिंह को भी इस रहस्योद्घाटन से अचानक धक्का सा लगा। उन्होंने उन दोनों व्यक्तियों की ओर देखा जो उनके ही गांव के थे और मेहमानों के आने से पूर्व से ही वहीं पर थे। वे दोनों भी चौधरी की ओर ही देख रहे थे। उनके चेहरे पर ऐसे भाव थे मानो कहना चाहते हो- अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे।

चौधरी वीरभान ने स्वयं को सम्हाला और मेहमानों की ओर देखा जो अभी भी उत्तर की आशा में उनकी ओर देख रहे थे। बोले- राजबीर सिंह जी, निश्चित रहिये, जो होगा अच्छा ही होगा। शादी विवाह के मामले में मैं अकेला निर्णय नहीं कर सकता, मुझे अपनी पत्नी से भी बात करनी पड़ेगी। मैं घर तक जाकर आता हूं तब तक आप जलपान करिये। 

राजबीर सिंह ने सहमति में सिर हिलाया। और चौधरी वीरभान उठ खड़े हुए। उनके साथ ही वे दोनों ग्रामवासी भी खड़े हो गये और उनमें से एक ने कहा- अब हम भी चलते हैं चौधरी साहब। फिर कभी उपस्थित होंगे। 

चौधरी वीरभान समझ गये कि ये क्या चाहते हैं अतः सहमति में सिर हिलाया और बाहर निकल गये।

चौधरी वीरभान सिंह सरल स्वभाव के मानवतावादी व्यक्ति थे। जाति-पाति और ऊंच-नीच की भावना को वह मानवता विरोधी और भारतीय समाज की सबसे बड़ी बुराई मानते थे। किन्तु उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें इस प्रकार परीक्षा देनी होगी यह उन्हें अनुमान न था। घर जाने के स्थान पर वे सीधे पंडित रामप्रसाद के घर गये। पंडित रामप्रसाद बडे सुलझे हुए व्यक्ति थे। जीवन में जब कभी भी चौधरी के सामने अनिर्णय की स्थिति आई तब उन्होंने पंडित रामप्रसाद को अपना सबसे बड़ा हितैषी पाया। भाग्यवश पंडित जी घर पर ही मिल गये। चौधरी ने सारी बातें उन्हें बताई और कुछ देर विचार विमर्श के बाद दोनों चौधरी के घर आये। पंडित जी ने कुछ देर चौधरी के बेटे महेंन्द्र से बात की और चौधरी ने अपनी पत्नी से विचार विमर्श किया। उसके बाद चौधरी के घर कुटुम्ब के लोगों को बुलाकर सारी बात बताई गई। महेन्द्र के दोस्तों को बुलवाया गया तथा उन्हें कुछ काम सौंपे गये। इस सब काम में लगभग दो घण्टे बीत गये। इन सब कार्यों से निपटकर चौधरी वीरभान सिंह पंण्डित रामप्रसाद के साथ अपने घेर की ओर चले। रास्ते में उन्हे जो भी मिलता वह उन्हें कुछ अलग नजरों से देखता। कुछ की नजरों में हमदर्दी तो कुछ की नजरों में उन्हें व्यंग के भाव नजर आये। चौधरी समझ गये कि बात सारे गांव में फ़ैल चुकी है। उनके चेहरे पर मुस्कराहट उभर आई।

मेहमानों के पास पहुंचकर चौधरी ने देरी के लिये क्षमा मांगते हुए पंडित रामप्रसाद का परिचय मेहमानों से कराया फिर बोले- आप तो जानते ही हैं कि बच्चों के विवाह का फैंसला करना कितना कठिन होता है। इसलिये कुछ ज्यादा ही समय लग गया। 

राजबीर सिंह ने सहमति में सिर हिलाया और उनका फैंसला जानने के लिये उत्सुकतावश उन दोनों की ओर देखा। 

चौधरी वीरभान ने उनकी जिज्ञासा को भांप कर पंडित रामप्रसाद की ओर इशारा किया।

पंडित रामप्रसाद ने धीर गम्भीर आवाज में कहना शुरू किया- राजबीर सिंह जी आप और चौधरी वीरभान सिंह दोनों ही बड़े भाग्यशाली हैं कि भगवान ने आपको इतने अच्छे बच्चे दिये। मैने चौधरी के बेटे महेंन्द्र से बात की है, उसने बताया कि महेन्द्र और आपकी बेटी दोनों ने मिलकर तय किया है कि यदि दोनों के परिवार सहमत हुए तो विवाह कर दें अन्यथा वे दोनों बिना कोई विरोध किये सदैव के लिये अलग हो जायेंगे। किसी भी हालत में वे अपने माता पिता का अपमान नहीं होने देंगे। पंडित जी ने एक गहरी सांस ली और पुनः बोले- जब बच्चे अपने परिजनों का इतना सम्मान कर रहे हैं, तो हम उनका मान कैसे न रखें? रही बात जाति की तो चौधरी वीरभान सिंह ने जाति-पाति और ऊंच-नीच को कभी भाव नहीं दिया। इस रिस्ते के बहाने परमात्मा ने सम्भवतः चौधरी साहब की परीक्षा ली है और चौधरी साहब कभी किसी परीक्षा में असफल नहीं हुए न अब होंगे। आपकी बेटी हमारी हुई। वह चौधरी परिवार की कुलवधु बनेगी।

पंडितजी की बात सुनकर राजबीर सिंह की आंखों से आंसू बह निकले। वह भरे गले से बोले- विश्वास नहीं हो रहा कि मेरी बेटी इतनी भाग्यवान होगी। मैं आपके सामने बहुत गरीब आदमी हूं लेकिन अपना सबकुछ बेचकर इस शादी में लगा दूंगा, शान के साथ अपनी प्यारी गुड़िया का विवाह करूंगा। 



चौधरी वीरभान सिंह ने उठकर राजबीर सिंह को गले लगा लिया। वह बोले- धीरज रखिये राजबीर सिंह जी, आपको कुछ नहीं बेचना है। आपने अपनी बेटी को पढ़ा-लिखाकर इस योग्य बना दिया है कि उसे अपने घर की बहु बनाकर मुझे अपने ऊपर गर्व होगा। और हमारे पास ईश्वर का दिया बहुत कुछ है और वह सब भी आपकी बेटी का होने जा रहा है। मैंने गांव वालों को बुलवा भेजा है। आज ही मेरे बेटे को अपनाकर यह रिस्ता पक्का कीजिये।

राजबीर सिंह भावावेश में बहुत देर तक चौधरी वीरभान के गले लगे रहे। 

कुछ देर बाद गांव वालों की उपस्थिति में रिस्ते की रश्म पूरी की गई जिसमें दोनों पक्षों की जातियों का भी पूरा बखान किया गया।

ढोल बज रहा था, गांव निवासी मिठाई खाकर वापस अपने घर लौट रहे थे। कुछ लोग चौधरी की प्रसंसा कर रहे थे तो कुछ लोग अजीब से तर्क देकर चौधरी की आलोचना कर रहे थे। उनमें से एक व्यक्ति ने मुस्कराकर अपने साथ चलते हुए दूसरे व्यक्ति से कहा- कुछ भी कहो, चौधरी अपनी बात का धनी है, वह हर परीक्षा में पास होता है और आज भी हुआ।



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