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मां की ममता

MANGAL SINGH 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक मां 22864 0 Hindi :: हिंदी


सह के कष्ट पीड़ा, जो नौ माह है संभालती।
 बेजान से शरीर में, जो है जान डालती।
 पिला के दूध अपने सीने का, जो हमें है पालती। 
इक बेजुबान के अंदर, जो शब्दों को ढालती। 
नशवर शरीर मेरा है, इसमें सांस सिर्फ मां है। 
बहुत खुश नसीब हैं बो, जिनके पास मां है। 
अपनी भूख मार के, जिसने हमें खाना खिलाया। 
खुद न सोई रात भर, पलकों तले हमको सुलाया। 
मानी न गलती जरा भी, चाहे गलती करके आया।
 इच्छा न कोई छूटने दी, जो भी मांगा सब है पाया।
 जिंदगी को जीने का,  एहसास सिर्फ मां है। 
बहुत खुश नसीब हैं बो, जिनके पास मां है। 
फिर क्यों लफ्जों तक ही, मां स्थायी हो जाती है।
 पत्नी के आने के बाद, मां पराई हो जाती है।
 क्यों हम अपनी पत्नी को, सब कुछ समझ लेते हैं।
 जिसने पाल पोस कर बड़ा किया, उसे वृद्धा आश्रम देते हैं। 
इतनी बड़ी दुनिया में अपने तो बहुत हैं,
 लेकिन खास सिर्फ मां है। 
बहुत खुश नसीब हैं बो, जिनके पास मां है।

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