Sudha Chaudhary 10 Jul 2023 कविताएँ अन्य 6935 0 Hindi :: हिंदी
दूरी की ही बात अगर है दूर आज उल्लास बहुत है क्षण क्षण में यह विपदा आई मानो कही सिन्धु बह आई । तुम्हें देखने से पहले मस्तक पर कुछ छप जाता है बहुत दिनों पहले जो तुमने ली थी पहली अंगड़ाई। मेरे अंत का भार बहुत विचलित कर देता है किस क्षण यह मुस्काए बस कौतूहल होता है। तुममें मुझ में ,मुझ में तुममें अब अंतर स्पष्ट हुआ भेद पुराना ही था बाहर अब प्रदीप्त हुआ। कहां तुम्हारी चाहत में दिन, रैन दिखाई पड़ते थे करुण पुंज गंभीर बने लहरों में दिखाई पड़ते थे आज बिम्ब है ऐसा जैसे जीवन सोता रहता। सुधा चौधरी बस्ती