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ध्वनि प्रदूषण से- स्वास्थ्य पर बुरा असर

virendra kumar dewangan 16 Jul 2023 आलेख समाजिक Pollution 6262 4 5 Hindi :: हिंदी

ध्वनि प्रदूषण वह है, जो मनुष्य या दूसरे जीवित प्राणियों पर शोर के कारण उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता हो। यही ध्वनियां जब निरंतर और तीव्र होती हैं, तब शोर बन जाया करती हैं। 

      डब्ल्यूएचओ ने 1999 में 70 डेसीबल से ऊपर की ध्वनियों को सेहत के लिए नुकसानदेह माना है।

	यूएनओ का पर्यावरण कार्यक्रम कहता है कि दुनिया के ध्वनि प्रदूषणयुक्त 61 शहरों में भारत के 5 शहर शामिल हैं। ये हैं-मुरादाबाद-उप्र, कोलकाता, आसनसोल-प. बंगाल; जयपुर-राजस्थान और देश की राजधानी दिल्ली। इसमें भी यूपी का मुरादाबाद ध्वनि प्रदूषण के मामले में दुनिया का दूसरा प्रदूषित शहर है।

       ध्वनि प्रदूषण के संबंध में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का नियम है कि रहवासी इलाकों में दिन में 55 व रात को 45 डेसीबल, व्यावसायिक क्षेत्रों में दिन में 65 और रात को 55 तथा औद्योगिक क्षेत्रों में दिन में 75 व रात को 70 डेसीबल से अधिक मात्रा में शोर नहीं होना चाहिए, जिसको डिजिटल साऊंड लेबल मीटर से आसानी से नापा जा सकता है।
 
      इस संबंध में सुप्रीमकोर्ट ने आदेश देकर कहा है कि ऊंची आवाज मौलिक अधिकारों का उल्लंधन है, इसीलिए तेज आवाज में लाउडस्पीकर नहीं बजाया जा सकता। उनका यह भी कहना है कि लाउडस्पीकरों की आवाज तय मानकों से अधिक नहीं होनी चाहिए।

      ध्वनि प्रदूषण के संबंध में निर्धारित नियमों का पालन करना-करवाना राज्य सरकारों की प्राथमिक जिम्मेदारी है।

      सीपीसीबी का नियम यह भी कहता है कि सार्वजनिक स्थल पर भोंपू बजाने के लिए हर किसी को पुलिस प्रशासन या प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति लेनी होगी। साथ ही, भोंपू बजाने की अनुमति रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक नहीं दी जाएगी। किसी विशेष परिस्थिति में किसी को अनुमति दी भी जाएगी, तो वह केवल रात 10 बजे से 12 बजे तक के लिए ही होगी, जो साल में केवल 15 दिनों के लिए मान्य होगी।
 
      ध्वनि प्रदूषण के संबंध में किसी को कोई शिकायत करनी है, तो शासन के हेल्पलाइन नंबरों पर की जा सकती है।
 
      सीपीसीबी के कानून में ध्वनि की सीमा उल्लंधन में धारा-15 में सजा का प्रावधान है। उल्लंधन पर पांच साल तक की कैद और एक लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है। लगातार उल्लंधन पर 5 हजार रुपया रोज जुर्माने का प्रावधान है। यह भी कि ध्वनि प्रदूषण पर पुलिस, परिसर में घुसकर लाउडस्पीकर जब्त कर सकती है।

      ध्वनि प्रदूषण पर सुप्रीमकोर्ट का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय 18 जुलाई 2005 का है, जिसमें कोर्ट ने कहा है कि हर व्यक्ति को शांति से रहने का अधिकार है और यह अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है। 

     लाउडस्पीकर या तेज आवाज में अपनी बात कहना अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार में आता है, किंतु अभिव्यक्ति की आजादी जीवन के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकती।

      शीर्ष कोर्ट ने यह भी कहा है कि शोर करनेवाले अक्सर अनुच्छेद 19(1)ए में मिली अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की शरण लेते हैं। लेकिन, कोई व्यक्ति लाउडस्पीकर चालू कर इस अधिकार का दावा नहीं कर सकता। अगर किसी के पास बोलने का अधिकार है, तो दूसरे के पास सुनने या सुनने से इंकार करने का अधिकार है। 
    
	यह सच है कि ध्वनि प्रदूषण मानवनिर्मित समस्या है। भोंपू इसका एक महत्वपूर्ण कारक है। दरअसल, विकास योजनाओं व तकनीकी विकास के साथ-साथ ध्वनि प्रदूषण रफ्तार पकड़ चुका है। यही कारण है कि रेल, सड़क, हवाई यातायात और उद्योग-धंधे इसकी मारकता में वृद्धि करते नजर आ आते हैं। 

साथ ही धार्मिक गतिविधियों, घरेलू संसाधनों, सामाजिक क्रियाकलापों और मनोरंजन के साधनों में ध्वनि प्रदूषण डीजे, माइक व लाउडस्पीकर के सहारे परवान चढ़ रहा है। यही नहीं, मोबाइल, टीवी की ध्वनि, मोटरवाहनों की पीं-पीं, पानी निकासी पंपों और मिक्सर मशीनों के धर्र-धर्र की निरंतरता बहरेपन को आमंत्रित कर रही है।

	ध्वनि प्रदूषण की निरंतरता से मनुष्यों में जहां तनाव, अनिंद्रा, ह्दयरोग, उदररोग, मेटाबॉलिक सिंड्रोम, चिढ़चिढ़ापन व बहरापन आदि हो रहा है, वहीं यह लोकस्वास्थ्य को चौपट कर मनुष्यों की कार्यक्षमता को प्रभावित कर रहा है।

	ध्वनि प्रदूषण न केवल मनुष्यों को, अपितु यह थलचरों व जलचरों को भी दुष्प्रभावित करता है।
 
सागरों व महासागरों में जलपोतों, युद्धपोतों, तेलउत्खननों, भूकंपी परीक्षणों, युद्धाभ्यासों व मिसाइल परीक्षणों के भारी हलचल, कोलाहल और उथलपुथल  से जलजीवों का जीवन कठिनाइयों से भर गया है।

	जिस तरह प्रकृति का सुमधुर शोर-कलकल बहते नदी-नाले, बारिश की रिमझिम, हवा की मधुर ध्वनि, पशु-पक्षियों की आहट व चहचहाहट हमें सुहाती है और हमको सुकून देकर हमारे लिए लाभकर हुआ करती है, उसी तरह पेड़-पौधों की सघनता से ध्वनि प्रदूषण को 2 डेसीबल तक नियंत्रित किया जा सकता है।

	वाहनों का शोर कम करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग, साइकिल का अधिकाधिक उपयोग और कम दूरी की आवाजाही के लिए पैडलमार्च भी कारगर हो सकता है।

इसी तरह व्यक्तिगत तौर पर वाहनों का निरंतर सर्विसिंग करवाना, घरेलू उपकरणों का वाल्यूम कम रखना और ईयर-प्लग का इस्तेमाल करना भी उपयोगी हो सकता है।

यही नहीं, लाउडस्पीकरों का शोर भी नियंत्रित होना चाहिए, जो सबसे अधिक ध्वनि प्रदूषण फैला रहे हैं। इसके लिए उच्चतम और उच्च न्यायालयों के आदेशों का पालन करवाना राज्य सरकारों का सर्वप्रमुख दायित्व है।

इसके लिए राज्य सरकारों को समझना और लोगों को समझाना होगा कि मसला धार्मिक गतिविधि नहीं, बल्कि लाउडस्पीकरों का कानफोड़ू शोर है।
 
जहां तक लाउडस्पीकरों के जन्म की बात है। इसका आविष्कार 160 साल पहले हुआ। लाउडस्पीकर का सबसे पहला इस्तेमाल 1936 में सिंगापुर के एक मस्जिद में अजान के दौरान हुआ। भारत में यह 1970 के दशक में आया।

प्रश्न यह कि लाउडस्पीकर भारत में आने के पहले क्या अजान या पूजा-पाठ नहीं होते थे? होते थे और बखूबी होते थे। फिर अब शोरनुमा इस उपकरण को तिलांजलि दे देने या इसका साउंड तय मानकों पर रखने में किसका क्या नुकसान हो सकता है?

इसीलिए कहा जा रहा है एक, तो मत-मजहब में लाउडस्पीकरों की आवश्यकता नहीं है, दूसरे आज के संचार युग में अन्य माध्यमों से भी सूचना संचारित व प्रसारित की जा सकती है।
 
क्या यह जरूरी है कि अपनी धार्मिक-सांस्कृतिक गतिविधि को लाउडस्पीकर के माध्यम से जबरन दूसरे लोगों को अवगत कराया जाए? वस्तुतः, यह अराजकता है, जो शक्ति प्रदर्शन के रूप में सामने आ रहा है।

न्यायालयों को इस मामले में स्वतः संज्ञान लेना चाहिए कि उसके आदेशों का पालन राज्य सरकारें कर रही हैं या नहीं? जो सरकारें उनके आदेशों की अवहेलना और अवमानना कर रही हैं, उनसे न्यायालयों को शक्ति के साथ निपटना चाहिए।

इस सिलसिले में उप्र की सरकार ने समस्त धार्मिकस्थलों में लाउडस्पीकरों की आवाज को परिसर के बाहर न जाने देने का जो आदेश दिया है और उसका शत-प्रतिशत पालन करवाया है; वह देश-प्रदेश की सरकारों के लिए अनुकरणीय हो सकता है।
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अनुरोध है कि पढ़ने के उपरांत रचना को लाइक, कमेंट व शेयर करना मत भूलिए।

Comments & Reviews

संदीप कुमार सिंह
संदीप कुमार सिंह बहुत खूब, लाजवाब।

9 months ago

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virendra kumar dewangan
virendra kumar dewangan Thanks for comment & review

8 months ago

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virendra kumar dewangan
virendra kumar dewangan शेयर भी कीजिये

8 months ago

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virendra kumar dewangan
virendra kumar dewangan please share to all

8 months ago

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