रेल परिचालन में रुकावट::
पंजाब के आंदोलनरत किसानों की हठधर्मिता के आगे रेलवे बोर्ड ने झुकने से इंकार करते हुए कहा है कि वह केवल मालगाड़ियों का परिचालन नहीं, यात्री टेªेनों का भी परिचालन करेगा या फिर किसी का भी नहीं।
रेलवे बोर्ड के चेयरमैन ने साफ किया है कि राज्य या कोई संगठन यह विकल्प नहीं चुन सकता कि कोई ट्रेन कब और कहां किस रूट पर चलाई जाए? यह रेलवे का विशेषाधिकार है।
उन्होंने यह भी कहा है कि प्रदर्शनकारी किसान पंजाब के एक रेलवे स्टेशन पर जमा हैं और बाकी 22 अन्य स्टेशनों केे बाहर डटे रहकर धमकियां दे रहे हैं कि गर मुसाफिर टेªनें दौड़ाई गई, तो वे रेलवे टेªक में पसर जाएंगे।
यह हास्यास्पद स्थिति है कि आंदोलनकारी एवं राज्य सरकार के बयान एक सरीखे हैं कि रेलवे के टैªक इसलिए खाली किए गए है कि उसमें सिर्फ मालागाड़ियां दौड़ाई जाएं। गोया मालगाड़ियों का टैªक अलग है और यात्रीगाड़ियों का टैªक अलग। जिस टैªक में मालगाड़ियां दौड़ सकती है, उस टैªक पर पैसेंजर टेªनें क्यों नहीं दौड़ सकती हैं।
क्या एक लोककल्याणकारी सरकार ऐसा गैर जिम्मेदाराना बयान दे सकती है कि वह सड़कें इसलिए खाली करवाई है कि उसमें केवल ट्रकें चलाई जाएं। यदि ऐसा है, तो फिर बसें, टैक्सियां, कारें, जीपें और अन्य वाहन कहां चलाए जाएंगे? लोककल्याण के निहितार्थ यह विचारना क्या राज्य सरकारों का दायित्व नहीं है?
विदित हो कि तीन केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोधस्वरूप पंजाब के किसानों ने 24 सितंबर से प्रदेशभर में रेलवे टैªक बाधित कर रखा हैं। उधर, प्रदेश सरकार ने एक बयान जारी कर लोगों को गुमराह किया है कि प्रदेश के रेलवे ट्रैक खाली करवा दिए गए हैं।
ऐसे में, उन हजारों-लाखों लोगों की पेशानी में बल पड़ गए हैं, जो त्योहारी मौसम में इधर-से-उधर आना-जाना चाहते हैं और अपना कार्य-व्यापार करना चाहते हैं।
जब राज्य सरकार किसानों को मालगाड़ियां चलवाने के लिए राजी कर सकती हैं, तो यह ऐसा क्यों नहीं कर सकती कि यात्रीगाड़ी भी चलवाई जाएं। इससे तो यही आभास होता है कि किसान उसके ही इशारे पर रेल पटरियों पर काबिज हैं।
इधर, रेलवे बोर्ड का कहना है कि राज्य सरकार ने टेªनों की सुरक्षा का आश्वासन नहीं दिया है, जबकि अपने-अपने राज्य में रेलवे की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकारों का विषय है। इसीलिए रेलवे का कहना है कि उसे राज्य सरकार से सौ फीसद सुरक्षा की गारंटी चाहिए।
इन स्थितियों से तो यही आभास होता है कि पंजाब सरकार कोरी सियासत कर रही है। वह एक ओर किसानों को भड़काकर रेलवे टैªक बाधित कर रही है, दूसरी ओर रेलवे को रेलगाड़ियां चलाने के लिए आमंत्रित कर रही है।
यह सस्ती राजनीति पंजाब सरकार को ही महंगी पड़ेगी; क्योंकि इससे पंजाब राज्य के लोग ही प्रभावित हो रहे हैं। इस दोगली नीति से न केरल, महाराष्ट्र, प. बंगाल, असम, ओडिशा, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक के लोगों को प्रभाव पड़ रहा है, न अन्य राज्य के लोगों को। पड़ रहा है, तो केवल और केवल पंजाब के लोगों को।
वह भी उस पंजाब में, जहां पर किसानों का 90 प्रतिशत से अधिक अनाज समर्थन मूल्य में सरकारें खरीद लेती हैं।
ऐसी ही दुःखद स्थिति तब निर्मित हो गई थी, जब दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता कानून के विरोधियों ने महीनों तक कब्जा जमा लिया था। तब दिल्ली के लोग ही सर्वाधिक दुष्प्रभावित थे। दिल्ली सरकार व पुलिस कुछ नहीं कर पा रही थी।
हाल ही में एक याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीमकोर्ट को कहना पड़ा है कि कोई व्यक्ति या संस्था सार्वजनिक स्थलों को अवरूद्ध नहीं कर सकता। यह गैरकानूनी कृत्य है। अन्यों के साथ अन्याय है। इससे दूसरे व्यक्ति के स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन होता है।
रेलवे टैªक पर ऐसा ही बाधा आरक्षण के लिए उतावले संगठन और जातियां भी डालती रहती हैं। गुर्जर, जाट आरक्षण आंदोलन इसका ताजा दृष्टांत है। माना कि अपनी मांग के लिए सरकारों का ध्यान खिंचना आवश्यक है, लेकिन रेल पटरियां, सार्वजनिक सड़क, सार्वजनिक स्थल बाधित कर आंदोलन किया जाना कतई स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
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