YOGESH kiniya 30 Mar 2023 आलेख राजनितिक बड़ी कुर्बानी किसकी 40120 0 Hindi :: हिंदी
बड़ी कुर्बानी किसकी इतिहास के पन्नों से वर्तमान के पेपर तक सियासत के गलियारों ने किसान को हमेशा अन्नदाता का दर्जा ही दिया है। देश का किसान न केवल अन्नदाता है बल्कि उससे कहीं बढ़कर कुर्सी के नीचे बीछे लाल कारपेट को खींचकर पदासीन को धरातल पर लाने की ताकत रखने वाला एक मतदाता भी है। तो फिर जब सत्ता के गलियारों में चलने वाली हवाएं अनुकूलित सुकून दे रही थी तो सत्ताधारीयों को उसमें जलजला लाना क्यों उचित लगा ? क्या उसमें कहीं अन्नदाता का हित छिपा हुआ था ? देश के इस छोर से उस छोर तक इस प्रदेश से उस अंचल तक खेतों में खड़ा हर भारतीय शत प्रतिशत जमीन से जुड़कर किसानी करता है । तो फिर सबसे पहले और सबसे ज्यादा दर्द उस राज्य के किसान को क्यों हुआ जहां का किसान देश के अन्य राज्य के किसानों की अपेक्षा ज्यादा संपन्न और ज्यादा उपजाऊ जमीन और भरपूर पानी के साथ अपने खेत में कुदाल लेकर खड़ा है । क्या यह सियासत की शुरुआत थी या उस किसान की दूरदर्शिता ? जब आप इन तीनों कृषि फरमानो का गहन अध्ययन करेंगे तो शायद आपको लगेगा कि नहीं यह सियासत नहीं हो सकती । क्यों कि अगर यह सियासत होती तो देश का किसान अपने घर से निकलकर अपने खेत खलिहानो को सुना छोड़कर राजा की चौखट पर डेरा डालकर सर्दी, गर्मी ,बरसात सहन करते हुए सरकारी लाठियां खाकर अपने सफेद झग कफन पर लाल सुर्ख धब्बे लेकर नहीं जाता । और अपने भाइयों की शहादत के पश्चात भी जिसने राजा की चौखट को ना छोड़ा हो तो निसंदेह देश के अन्नदाता का दर्द बहुत गहरा था। इतना गहरा दर्द जो लाठियों और लाशों के बाद भी कम होने की बजाय और ज्यादा बढ़ गया। तो कहीं ना कहीं लगता है कि सब कुछ जानते हुए भी राजा ने ऐसा भोजन क्यों परोसा जो अन्नदाता को नागवार गुजरा और उसके शरीर में नासूर कर गया ? खैर पक्ष और विपक्ष दोनों ने ही किसानों की इस बगावत की आग में अपनी रोटियां भली भांति सेकी है , लेकिन एक बात कांच की तरह स्पष्ट हो गई है, कि देश की सियासत करने वालों के लिए किसान अन्नदाता ना होकर मात्र एक मतदाता है। और ऐसा प्रभावी मतदाता जिसने समय आने पर अपने मत की ताकत से सत्ताधारियों को पीछे हटने को मजबूर कर दिया । अगर अन्नदाता के कफन पर लगे लाल धब्बों से सरकार पीछे हटती तो शायद इन कदमों के पीछे हटने की सरसराहट बहुत पहले सुनाई दे जाती। लेकिन अब सत्ताधारी सत्ता में लौट कर फिर गलियारों की अनुकूलित हवाएं और ब्रेड बटर खाएंगे । और देश का अन्नदाता खेत की मेड पर खड़ा होकर कंधे पर कुदाली लेकर किसानी करेगा तथा अपना और देश का पेट भरेगा । पर उस खेत की कुदाली और रखवाली कौन करेगा ? जिसका रखवाला राजा की चौखट पर दम तोड़ गया हो। समय सारे घाव भर देगा लेकिन उस बाप के कलेजे का घाव नहीं भरेगा जिसका किसान बेटा साथियों के साथ मिलकर राजा के आगे फरियाद लेकर गया था लेकिन लौटकर घर नहीं आया । क्या राजा का और उसके किसान साथियों का अब फर्ज नहीं बनता कि उन गहरे घावों पर लेप लगाने पश्चात लौटे? क्योंकि इन घावों को देने में कहीं ना कहीं राजा उत्तरदायी है । लेकिन यह सब कुछ घटित हो जाने के बाद जहन में उठने वाले उस प्रश्न का एक उत्तर स्पष्ट हो जाता है । कि इस आंदोलन में सबसे बड़ी कुर्बानी किसने दी ? - योगेश किनिया "योगी" वरिष्ठ अध्यापक हिन्दी राजकीय मॉडल स्कूल सिवाना, बाड़मेर
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