संदीप कुमार सिंह 18 Aug 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 3691 0 Hindi :: हिंदी
दिन दिन बढ़ती जा रही, दुनिया में तकलीफ। तरह तरह के रोग से, मिले नहीं तारीफ।। दिन दिन बढ़ती जा रही,सब चीजों की मूल्य। आफत यह है जो बड़ा, जीवन जैसे शूल्य।। दिन दिन बढ़ती जा रही, लोगों में व्यभिचार। मानवीय गुण में कमी,नहीं रहा अब प्यार।। दिन दिन बढ़ती जा रही,कुत्सित भरे विचार। भाई भाई में रोष है,टूट रहा परिवार।। दिन दिन बढ़ती जा रही,वसुंधरा पर पाप। रिश्तों में भी दोष है, जैसे कोई शाप।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....