राहुल गर्ग 21 Mar 2024 शायरी समाजिक Rahulvision1.blogspot.com 3288 0 Hindi :: हिंदी
मैं उस दौर में हूँ जहां, सबके शामियाने हैं । हर जगह अपने लिए, सबके पास बहाने हैं ।। एक मेरा ही घरौंदा है, जहाँ दीपक जलता है और सभी को तो, एक दूसरे के घर जलाने हैं I । मैंने इल्ज़ाम सारा अपने ऊपर ही ले लिया मैं क्यूँ कहूँ कि, यहाँ सबके अलग पैमाने हैं ।। एक दिन चुकाना है सबको अपने कर्मों का हिसाब। कर्म आज भी कहाँ लोगों से रिश्वत लेने वाले हैं।।