Santosh kumar koli 04 Jan 2024 कविताएँ समाजिक विचार -उद्भ्रमण 3005 0 Hindi :: हिंदी
उग्र, उद्विग्न भाव, आरोहावरोह मन में। कस्तूरी मृग ज्यूं, भटके कानन में। संयुग्मन, पुनरागमन, वासर, स्वप्न में। वामन से दानव, दानव से वामन क्षण में। कभी ज्वार कभी भाटा, कभी मरकताल। कभी जल में अनल, कभी अनल में जल उछाल। कभी सात्विक, कभी पाशविक, कभी आल- जाल। कभी तुषार कण, कभी फूटे बांध की पाल। धनात्मक की, ऋणात्मक से सीधी टक्कर। उद्वेग,अक्षित, उद्भ्रांत, कोई नहीं मनोसाकर। इसी निरोधन, संयम, प्रक्षय में, जग घन -चक्कर। ज्ञान, ध्यान, बखान, करता असर।