ब्राह्मण सुधांशु "SUDH" 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक जीवन, सामाजिक 14680 0 Hindi :: हिंदी
हाल मुझसे ना पूछे कोई मेरा कैसे जी रहा हूँ! मर रहा हूँ दिल खोल के आज सबसे कह रहा हूँ!! धङकने घबराई आँख भीग आई है! पकड़ने अब मुझको मेरी मौत आई है!! यहीं तक का साथ था अब मुझे आजाद कर देना! कहा सुना सभी शिकायते अब माफ कर देना!! ले कर जन्म अब दुबारा फिर से ना आऊँगा! परेशान था खुद से अब खुद को ना सताऊंगा!! घुट घुट के जिंदगी जिया अब मर रहा हूँ! सुकून मिलेगा बहुत फिर भी डर रहा हूँ!! सहे हैं लाखो दर्द उस दर्द को भी झेलूंगा! जलाएँगे मुझे मेरे अपने मै आग से खेलूंगा!! रोऊंगा मन ही मन जी भर के चिल्लाऊंगा! तुम टूट ना जाओ कहीं आवाज़ अपनी दबाऊंगा!! मौत सबकी निकट है फिर भी लोग अनजान हैं! घमंड किस बात का इन्हे भगवान भी हैरान है!!