संदीप कुमार सिंह 10 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 3375 0 Hindi :: हिंदी
(मुक्तक छंद) एक दौड़ था जब गम का मतलब भी नहीं था पता। हर गम तकलीफ़ खुशियों का ही है लगता था पता। कर्तव्यों के बेड़ी तले अब कटते हैं दिन रात_ किसी भी सूरत में नहीं भूलता हूं घर का पता। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....