भूपेंद्र सिंह 18 Dec 2023 कविताएँ दुःखद खेत का वर्णन,प्रकृति का चित्रण। 6255 0 Hindi :: हिंदी
मैं प्रातः ही निकला था होकर एक मतवाला, पहले किया था स्नान,फिर पिया चाय का प्याला। मैं निकला था घर से खेत देखने के लिए , सुनहरी रेत देखने के लिए, खेतों में फूलों के ढेर देखने के लिए, बेरियों पर लगे बेर देखने के लिए, रंग आसमानी देखने के लिए, खेतों में पानी देखने के लिए, पेड़ो पे फुदकती गिलहरी देखने के लिए , एक सुबह सुनहरी देखने के लिए, ऊंचे ऊंचे रेत के टीले देखने के लिए, सरसों के पत्ते गिले देखने के लिए, हिरनो की छलांगे देखने के लिए, किसानों की मांगे देखने के लिए, कौवों का शोर देखने के लिए , नाचते हुए मौर देखने के लिए, खेतो में काम करते किसान देखने के लिए, संसार का असली जहान देखने के लिए, देखकर मैं हो गया हैरान, बन चुका था अपने ही खेतो में मेहमान, जहां पहले खेत थे वहा अब ऊंचे ऊंचे भवन थे, वहा भी बिल्डिंगे थी जहा पहले वन सघन थे, बदल चुकी थी सारी ही छवि, देखता रह गया अपलक कवि, कहा गए वो खेत जहां बच्चे खेला करते थे, जहां किसान अपनी मस्ती में टहला करते थे, शहरीकरण ने गावो को भी अपने पंजे में जकड़ लिया है, आने वाली पीढ़ी का भविष्य अपने हाथो में पकड़ लिया है।। ✍️✍️भूपेंद्र सिंह रामगढ़िया।।