Samar Singh 07 Jun 2023 गीत दुःखद जब दिल नहीं लगता तो अपनों के भीड़ में भी व्यक्ति अकेला ही महसूस करता है। 5744 0 Hindi :: हिंदी
सभी हँस -गा रहे हैं, क्यों मैं ही दुःखों का मेला हूँ। अपनों के इस भीड़ में, क्यों मैं अकेला हूँ।। क्यों मुझे अकेलापन लग रहा है, ये कैसा पागलपन जग रहा है। सभी तो ऐसे हिले- मिले है, जैसे खुशियों के संगम है, मैं ही क्यों एक झमेला हूँ। अपनों के इस भीड़ में, क्यों मैं अकेला हूँ।। हर जगह खुशियों की बरसात है, मेरे लिए ही क्यों दुःखों की रात है। सभी खुशियों की जश्न मना रहे, कितना ये जमाना बेरहम है, मैं ही हर दुःख की बहार झेला हूँ। अपनों के इस भीड़ में, क्यों मैं अकेला हूँ।। रचनाकार- समर सिंह "समीर G"